
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : यह वही सनातन परंपरा है, जो दिलों को जोड़ देती है। जब दो अलग-अलग पंथों के महान साधक एक-दूसरे से मिले, तो केवल अभिवादन ही नहीं हुआ, बल्कि मन और आत्मा भी एक-दूसरे से जुड़े। आंखें भीगीं, मुस्कान खिली और मानो वर्षों से अलग दो भाई अचानक मिले हों।
सुबह करीब आठ बजे श्रीराधा केलिकुंज आश्रम में यह दृश्य देखने को मिला। उदासीय संप्रदाय के पीठाधीश्वर गुरुशरणानंद, संत प्रेमानंद की सेहत जानने आए। जैसे ही दोनों आमने-सामने हुए, भावनाओं का ऐसा संगम हुआ कि देखने वाले भी भावुक हो गए। संत प्रेमानंद ने साष्टांग प्रणाम किया, और गुरुशरणानंद ने अपने हाथों से उन्हें गले लगा लिया।
चरण पखारने का अनोखा दृश्य
संत प्रेमानंद ने गुरुशरणानंद को अपने आसन पर बिठाया और खुद जमीन पर बैठकर उनके चरण धोने का आग्रह किया। सामान्यतः गुरुपूर्णिमा पर ही चरण पूजन करने वाले गुरुशरणानंद ने संत प्रेमानंद की अपील को स्वीकार किया। आश्रम के सभी संत दौड़े और जल लेकर आए। संत प्रेमानंद ने चरण धोए, चंदन लगाया, माल्यार्पण किया और अंत में गुरुशरणानंद की आरती उतारी।
गुरुशरणानंद की प्रेरक बातें
गुरुशरणानंद ने कहा, "आप युवाओं में सनातन धर्म के प्रति जागरूकता फैला रहे हैं। ऐसे ही दीर्घायु होकर भक्तों पर कृपा करते रहें।" उन्होंने यह भी साझा किया कि किसी संत ने संत प्रेमानंद को किडनी दान करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उन्होंने कहा कि यह उनकी इच्छा के बिना नहीं होगा। संत प्रेमानंद ने हंसते हुए कहा, "जब तक भगवान चाहें, इन किडनियों से ही जीवन चलना है।"
अत्यंत भावपूर्ण मिलन का संदेश
संत प्रेमानंद ने आश्रम के अन्य संतों को गुरुशरणानंद के दर्शन करने का आमंत्रण दिया। हालांकि गुरुशरणानंद ने जाने की अनुमति मांगी, संत प्रेमानंद बोले, "आज लौटने का सवाल ही नहीं। जब से सुना कि आप आ रहे हैं, खुशी का ठिकाना नहीं रहा।"
यह मिलन केवल दो साधकों का नहीं, बल्कि सनातन परंपरा और भक्ति के एक जीवंत उदाहरण का प्रतीक था।