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लखनऊ. किसान आंदोलन (Farmer Protest) को 9 महीने पूरे हो गये हैं. 26 नवंबर 2020 को पंजाब, हरियाणा और देश के कुछ दूसरे हिस्सों से आये किसान दिल्ली बॉर्डर पर आ डटे थे. उन्होंने तीन नये कृषि कानूनों को रद्द करने को लेकर आंदोलन का बिगुल फूंका था. इन नौ महीनों में बहुत सी ऐसी बातें हुईं, जो इतिहास में दर्ज हो गयी हैं. इस दौरान दिल्ली के लालकिले पर झंडा फहराना तो पुलिस के साथ हिंसक झड़प करना तक शामिल है. आंदोलन की वजह से कई लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है. उन्हीं घटनाक्रमों में से 9 अहम बातों को हम आपके लिए लेकर आये हैं. तो आइये जानते हैं किसान आंदोलन के नौ महीनों की 9 बड़ी बातों को.

1. जाड़ा, गर्मी और बरसात तीनों मौसम में आंदोलन जारी
लम्बे समय बाद देश में कोई ऐसा आंदोलन खड़ा हुआ है जो इतने लंबे समय से टिका है. दिल्ली बॉर्डर पर जमे किसानों ने अपने आंदोलन के दौरान मौसम की भीषण मार झेली लेकिन अपने इरादे से टस से मस नहीं हुए हैं.

2. एक नये शब्द आंदोलनजीवी का जन्म
8 फरवरी को संसद में बोलते हुए पीएम नरेन्द्र मोदी ने एक नया शब्द गढ़ा. ये शब्द था आंदोलनजीवी. यानी कुछ ऐसे लोग जिनकी जीविका आंदोलनों पर टिकी रहती है और जो बिना किसी बात के भी आंदोलन में मस्त रहते हैं. उन्होंने कहा कि किसानों को यही आंदोलनजीवी बरगला रहे हैं.

3. यूपी और उत्तराखण्ड के चुनाव में किसान मिशन बनाकर आंदोलन को आगे बढ़ायेंगे
लखनऊ में किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि वे चुनाव में भी भाजपा की सरकार को सबक सिखाने में कोई कोर सरक नहीं छोड़ेंगे. उन्होंने एलान किया कि यूपी और उत्तराखण्ड में होने जा रहे चुनावों में वे जनता को भाजपा सरकारों की सच्चाई बतायेंगे. बता दें कि राकेश टिकैत बंगाल चुनाव में भी गये थे.

4. टूटते आंदोलन को राकेश टिकैत के आंसूओं ने फिर से जिंदा किया
जनवरी के आखिर में ऐसा लगा कि दिल्ली – यूपी बॉर्डर पर चल रहा किसान आंदोलन खत्म हो जायेगा. किसानों को आंदोलन वाली जगह खाली करने के निर्देश दे दिये गए थे. भारी पुलिस बल लगा दिया गया. उससे कुछ दिन पहले ही लाल किले पर किसानों का उग्र प्रदर्शन हुआ था. राकेश टिकैत की गिरफ्तारी के कयास लगाये जाने लगे. तभी राकेश टिकैत ने बेहद भावुक चाल चली, टिकैत कैमरों के सामने मंच से रोने लगे. टिकैत के रोने की बात जब किसानों तक पहुंची तो गांव से बॉर्डर की ओर वे चल पड़े. टूटता आंदोलन फिर खड़ा हो गया.

5. किसान संगठनों में टूट
नवंबर 2020 में जो आंदोलन शुरु हुआ था तब से लेकर अब तक नौ महीनों में किसान संगठनों में फूट भी दिखी है. पंजाब के गुरनाम चढ़ूनी ने पंजाब में इलेक्शन लड़ने का एलान कर दिया है जबकि बाकी किसान नेताओं ने अभी तक ऐसी बात नहीं कही है. इसके अलावा 26 जनवरी को लाल किले पर हुए उग्र प्रदर्शन के बाद भी कई संगठनों ने अपने आप को आंदोलन से अलग कर लिया था.

6. किसानों की ठाठ का पहली बार दिखा नज़ारा
इसी आंदोलन की ये देन है कि इससे पहली बार लोगों को पता चला कि किसान भी ऐशो आराम की जिंदगी जीता है. इस आंदोलन में आये किसानों के अस्थाई कमरों में एसी लगी तस्वीरें खूब वायरल हुई. चर्चा तेज हो गयी कि ये कैसे किसान हैं जो इतनी ठाठ में रहते हैं. लेकिन, एक दूसरा तर्क भी चल पड़ा कि क्या खेतों में काम करने वाले को एसी कमरों में रहने का हक नहीं है.

7. गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर अराजकता
नौ महीनों से चले आ रहे किसान आंदोलन में ये सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइण्ट माना जा सकता है. पहली बार शांतिपूर्ण तरीके से चले आ रहे इस आंदोलन पर दाग लगे. किसानों का उग्र प्रदर्शन गणतंत्र दिवस के मौके पर लाल किले पर दिखा. इसकी बहुत आलोचना हुई. दीप सिंह सिद्धू को इसका कसूरवार माना गया.

8. अनाज की रिकार्ड खरीद
किसान आंदोलन के अगुआ भी इस बात को मानते हैं कि इस दौरान सरकार ने किसानों से समर्थन मूल्य पर अनाज की जबरदस्त खरीददारी की. यूपी ने भी धान और गेहूं की पिछले सालों से ज्यादा खरीददारी का नया रिकार्ड इसी दौर में कायम किया है. हालांकि किसान संगठनों ने इसमें बड़े घोटाले की भी बातें उठायी हैं.

9. कृषि कानूनों को डेढ़ सालों के लिए टालने की बात कही केन्द्र ने
कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े किसान प्रतिनिधियों से सरकार की 11 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन, नतीजो सिफर रहा है. अभी तक आंदोलन का बस इतना असर सरकार पर रहा कि उसने कहा कि तीनों कानूनों को 18 महीनों के लिए स्थगित किया जा सकता है. हालांकि किसान इस बात पर तैयार नहीं हुए और ये भी न हो सका.

कुछ किसान नेताओं ने कुछ बेहद अहम घटनाक्रम गिनाये. मसलन सामाजिक समरसता का फिर से कायम होना. पश्चिमी यूपी में मुजफ्फरनजर दंगे के बाद अलग हुए जाट और मुस्लिम फिर से एक दागे में बंध गये हैं. राजस्थान के मीणा और गुर्जर साथ आ गये हैं. हरियाणा और पंजाब के बीच सलतज यमुना लिंक नहर के पानी का विवाद भी ठण्डा पड़ गया है.

बता दें कि केन्द्र सरकार ने तीन नये कृषि कानून पारित किये थे. पहला कानून ये है कि किसानों से बड़ी कम्पनियां सीधे खरीददारी कर सकेंगी. दूसरा कानून ये है कि कृषि उपज को कितनी मात्रा तक भी जमा करके रखा जा सकेगा. तीसरा कानून कान्ट्रैक्ट फार्मिंग का है जिसमें कम्पनी और किसान के बीच खेती को लेकर करार होना है. इन तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर किसानों का आंदोलन चल रहा है. इसी मुद्दे पर केन्द्र की सहयोगी रही अकाली दल पार्टी ने भी सरकार से नाता तोड़ लिया था.

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