नई दिल्ली, 22 अगस्त। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रविवार को दिल्ली पहुंचे। मीडिया से बातचीत में नीतीश कुमार ने कहा कि, ‘हम (एक प्रतिनिधिमंडल जिसमें विभिन्न दलों के प्रतिनिधि शामिल हैं) कल सुबह 11 बजे जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर पीएम मोदी से मुलाकात करेंगे।’
बता दें कि बिहार के सीएम नीतिश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी कुमार दोनों चाहते हैं कि राज्य में जाति आधारित जनगणना कराई जाए और इसको लेकर दोनों नेता आपसी मतभेदों को भुलाकर केंद्र सरकार से इसकी गुहार लगाते नजर आ रहे हैं। दोनों नेता इसको लेकर अपने-अपने तर्क दे चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना की मांग को पहले ही खारिज कर चुकी है। पिछले महीने 20 जुलाई 2021 को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में कहा था कि फिलहाल केंद्र सरकार अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती कराने का कोई आदेश नहीं दिया है।
आप सोच रहे होंगे कि नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव या अखिलेश यादव जाति आधारित जनगणना की मांग क्यों कर रहें हैं? इससे किसका फायदा होगा? बता दें कि खासकर ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले नेता ही इसकी मांग कर रहे हैं। इनकी मांग है कि इस बार की जनगणना में ओबीसी आबादी का डेटा अलग से एकत्रित किया जाए। मालूम हो कि उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही राज्यों में ओबीसी मतदाता का बड़ा वर्ग रहता है। ओबीसी वर्ग से आने वाले नेताओं का मानना है कि उनकी आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है।
अब यदि ओबीसी का डेटा आ जाएगा तो सियासी समीकरण भी उसी हिसाब से बनेंगे। चुनाव में टिकट बंटवारा और जीत का गणित बिठाने में भी मदद मिलेगी। इसीलिए तमाम ओबीसी वर्ग के नेता जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं। गौरतलब है कि बिहार में ओबीसी की आबादी 50 से 52 प्रतिशत, जबकि उत्तर प्रदेश में ओबीसी की आबादी 40 से 42 प्रतिशत बताई जाती है। ओबीसी की आबादी का अंतिम डेटा साल 1931 में जारी किया गया था।