हॉकी टीम सुमित वाल्मीकि प्रोफाइल , कैसे एक दिहाड़ी मजदूर बेटा एक राष्ट्रीय नायक बन गया.

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नई दिल्ली। सफलता के रास्ते आसान नहीं होते, लेकिन जो इन मुश्किलों से होकर गुजर जाता है वहीं सूरमा बन जाता है। अपने मां से बेहद करीब रहने वाले सुमित उनके कान की बाली से बने लॉकेट को अपने गले में पहनकर रखते हैं, ताकि मां से स्पर्श को महसूस कर सके। ओलंपिक जैसे बड़े मुकाबले से ठीक पहले मां का साथ छूट गया। सुमित बुरी तरह से टूट गए, लेकिन खेल के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें हौंसला लिया और आज ये देश के हीरो बन गए है।

जूठे बर्तन धोने वाला बना देश का हीरो

सुमित का बचपन बेहद संधर्ष और चुनौतियों से भरा रहा। पिता सफाई कर्मचारी थे तो मां घर में बच्चों की देखभाल करती थी। घर के खर्चों में हाथ बंटाने के लिए सुमित अपने पिता और भाईयों के साथ ढाबे पर काम करते थे। ढाबे में जूठे बर्तन धोते थे, ताकि चार पैसे घर में आ सके और लोगों का पेट भर सके। ढाबे का मालिक कभी-कभार बचा खाना उन्हें साथ ले जाने को दे देता था, लेकिन कई राते ऐसी भी गुजरी, जब घर में खाने को एक दाना नहीं हुआ करता था। पानी पीकर अपनी भूख मारने वाला आज विजेता बन गया, लाखों लोगों की प्रेरणा है। सुमित ने वनइंडिया के साथ बातचीत में अपने संघर्ष के दिनों को याद किया तो बेहद भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि कई दिन ऐसे बीत जाते थे, जब उनके घर में खाने को एक दाना नहीं होता था। जब मां से दूध मांगते तो बेबस मां ये कहकर टाल लेती थी कि बेटा चाय तक को दूध नहीं है, तुझे पीने के लिए कहां से दूं। सुमित के जीवन में कई ऐसे दिन गुजरें, जब ढाबे में भी काम नहीं मिलता था, फिर भाईयों के साथ वो गांव और आसपास के इलाकों में होने वाली शादियों में बर्तन धोने पहुंच जाते, ताकि घऱ के लिए खाना मिल सके।

 

 

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