
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पुरुषों द्वारा एक से अधिक विवाह करने की प्रथा पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि मुस्लिम पुरुषों को दूसरी शादी तभी करनी चाहिए जब वे अपनी सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार कर सकें। कुरान में बहुविवाह की अनुमति विशिष्ट कारणों से दी गई है। लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं।
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी मुरादाबाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान की। अदालत ने कहा है कि तब तक किसी मुस्लिम व्यक्ति को दूसरी शादी करने का कोई अधिकार नहीं है। जब तक कि वह अपनी सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार करने की क्षमता न रखता हो। इस्लाम में कुरान विशिष्ट कारणों से बहुविवाह की अनुमति देता है। विधवाओं और अनाथों की सुरक्षा के लिए इस्लामी युग में कुरान के तहत बहुविवाह की सशर्त अनुमति दी गई थी। लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं।
जानें- क्या है पूरा मामला?
न्यायालय ने याचिकाकर्ता फुरकान और दो अन्य द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए यह बात कही। याचिकाकर्ता फुरकान, खुशनुमा और अख्तर अली ने 8 नवंबर, 2020 को मुरादाबाद सीजेएम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लेने और समन आदेश को रद्द करने की मांग की थी। तीनों आवेदकों के खिलाफ 2020 में मुरादाबाद के मैनाठेर थाने में आईपीसी की धारा 376, 495, 120 बी, 504 और 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
इस मामले में मुरादाबाद पुलिस ने निचली अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया है। अदालत ने आरोपपत्र पर संज्ञान लेते हुए तीनों को सम्मन जारी किया है। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि आवेदक फुरकान ने बिना किसी को बताए दूसरी शादी कर ली। इस विवाह के दौरान उसने उसके साथ बलात्कार किया, जबकि वह पहले से ही विवाहित थी। याचिकाकर्ता फुरकान के वकील ने अदालत में दलील दी कि एफआईआर दर्ज कराने वाली महिला ने खुद स्वीकार किया है कि उसने फुरकान के साथ संबंध बनाने के बाद उससे शादी की थी।
आवेदक ने यह तर्क दिया।
अदालत को बताया गया कि उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 494 के तहत कोई अपराध नहीं किया गया। क्योंकि मुस्लिम कानून और शरीयत अधिनियम 1937 के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार शादी करने की अनुमति है। अदालत में यह भी तर्क दिया गया कि विवाह और तलाक से संबंधित सभी मुद्दों का फैसला शरीयत अधिनियम 1937 के अनुसार किया जाना चाहिए। जो पति की पत्नी के जीवनकाल में भी विवाह की अनुमति देता है।
याचिकाकर्ता फुरकान के वकील ने जफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेंट बनाम गुजरात राज्य मामले में 2015 के गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया। इसके अलावा कुछ अन्य न्यायालयों के निर्णयों का भी हवाला दिया गया। कहा कि धारा 494 के तहत अपराध माने जाने के लिए दूसरी शादी शून्य होनी चाहिए। लेकिन, अगर पहली शादी मुस्लिम कानून के तहत हुई है, तो दूसरी शादी सामान्य नहीं है।
'मुस्लिम पुरुष की दूसरी शादी हमेशा वैध नहीं होती'
राज्य सरकार द्वारा अदालत में इस तर्क का विरोध किया गया और कहा गया कि मुस्लिम व्यक्ति की दूसरी शादी हमेशा वैध विवाह नहीं होगी। क्योंकि यदि पहला विवाह मुस्लिम कानून के अनुसार नहीं हुआ था, लेकिन पहला विवाह हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार हुआ था और इस्लाम धर्म अपनाने के बाद वह मुस्लिम कानून के अनुसार दूसरी शादी करता है, तो ऐसी स्थिति में दूसरा विवाह अमान्य होगा और आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध लागू होगा।
818 पेज के फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि विपक्षी संख्या-2 के कथन से स्पष्ट है कि याची फुरकान ने उससे दूसरी शादी की थी। दोनों मुस्लिम महिलाएं हैं, इसलिए दूसरी शादी जायज़ है। अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 495 और 120बी के तहत अपराध साबित नहीं हुए हैं। अदालत ने इस मामले में विपक्षी संख्या 2 को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 26 मई 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में होगी।
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ में हुई। अदालत ने अगले आदेश तक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की दमनात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है।