Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तर प्रदेश में कोडीनयुक्त कफ सीरप की तस्करी का मामला अब और गंभीर होता जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाने के बाद अब जांच एजेंसियां भी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर आई हैं। करीब एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की इस अवैध तस्करी के मामले में उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने अपनी जांच प्रक्रिया में अहम बदलाव किए हैं।
एसटीएफ का मकसद साफ है—इस पूरे नेटवर्क की जड़ तक पहुंचना और आरोपियों को कानूनी तौर पर ऐसी सजा दिलाना, जिससे वे किसी भी स्तर पर बच न सकें। इसी कारण अब जांच को बिखरे हुए मामलों की जगह चुनिंदा और ठोस बिंदुओं पर केंद्रित किया जा रहा है। एसटीएफ के साथ-साथ विभिन्न थानों की पुलिस को भी इसी रणनीति के तहत काम करने के निर्देश दिए गए हैं।
इस दिशा में एक अहम कदम यह है कि अलग-अलग थानों में दर्ज मामलों की जांच करने वाले विवेचकों को एसटीएफ मुख्यालय बुलाकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्हें यह समझाया जा रहा है कि किस तरह से साक्ष्य जुटाए जाएं, ताकि अदालत में मजबूत केस तैयार हो सके और आरोपियों को तकनीकी आधार पर राहत न मिल पाए।
अब तक की जांच में प्रतिबंधित कफ सीरप की तस्करी से जुड़े 128 मामले अलग-अलग थानों में दर्ज हो चुके हैं। इस पूरे सिंडिकेट में शुभम जायसवाल को मास्टरमाइंड माना जा रहा है। उसके अलावा विकास सिंह नरवे, अमित टाटा और आलोक समेत 40 से ज्यादा लोगों के नाम जांच में सामने आए हैं। लखनऊ के सुशांत गोल्फ सिटी थाने में पिछले साल पकड़ी गई बड़ी खेप के बाद दर्ज मामले में भी शुभम को हाल ही में नामजद किया गया है।
एसटीएफ अब सभी थानों में दर्ज एफआईआर और जांच रिपोर्ट को एक साथ समन्वित कर अदालत में पेश करने की तैयारी में है। इसके लिए जांच की हर कड़ी को आपस में जोड़ा जा रहा है। एजेंसी इस बात की पड़ताल कर रही है कि शुभम जायसवाल किस कंपनी से कफ सीरप मंगवाता था, सप्लाई का नेटवर्क कैसे काम करता था, बीते वर्षों में कितनी अवैध कमाई हुई और इस सिरप को कहां-कहां खपाया गया।
कुल मिलाकर, यह साफ है कि एसटीएफ इस बार कोई ढिलाई नहीं बरतना चाहती। सरकार के सख्त रुख के बाद अब जांच एजेंसियां भी यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि इतने बड़े तस्करी नेटवर्क के दोषियों को कानून के शिकंजे से निकलने का कोई मौका न मिले।




