
Prabhat Vaibhav, Digital Desk: उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने 43,454 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। लेकिन अब पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के फैसले को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। 42 जिलों की बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया को लोग एक साजिश के तौर पर देख रहे हैं।
इसी मुद्दे को लेकर राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र भेजा है। पत्र में मांग की गई है कि इस निजीकरण की सीबीआई जांच कराई जाए।
परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि बिजली व्यवस्था सुधारने की जो योजना केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही है – ‘रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (RDSS)’ – उसमें सबसे अधिक पैसा केंद्र सरकार का ही लगाया जा रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप कर जांच करवानी चाहिए।
वर्मा ने पत्र में यह भी आरोप लगाया कि कुछ नौकरशाहों की भूमिका इस फैसले में संदिग्ध नजर आ रही है। उन्होंने लिखा कि यह देश में पहली बार हो रहा है कि सरकारी पैसे से सिस्टम को मजबूत करने के बाद, उसे निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है। इससे सरकारी खर्च का फायदा निजी घरानों को मिलने की आशंका है।
उन्होंने यह भी बताया कि RDSS योजना के तहत देशभर में कुल 3,03,758 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं ताकि बिजली कंपनियां आत्मनिर्भर बन सकें और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा मिल सके। इनमें से 43,454 करोड़ रुपये सिर्फ उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था पर खर्च हुए हैं। अब 42 जिलों में 51% हिस्सेदारी निजी कंपनियों को देकर उनका मालिकाना हक सौंपा जा रहा है, जो पूरी तरह गलत और नीतियों के खिलाफ है।