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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : हरिद्वार भारत की उन पवित्र जगहों में से एक है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु गंगा नदी में डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना करते हैं। इस धार्मिक नगरी में कई मंदिर स्थित हैं, जो न केवल श्रद्धा का केंद्र हैं, बल्कि उनके पीछे पौराणिक कहानियां और विशेष मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। इन्हीं में से एक है — दक्षेश्वर महादेव मंदिर, जो हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में स्थित है।

सावन में खास होता है यह मंदिर

श्रद्धालुओं की मान्यता है कि सावन के पावन महीने में भगवान शिव स्वयं अपने ससुराल कनखल में, इसी मंदिर में विराजते हैं। यही वजह है कि इस समय यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और पूरे मंदिर परिसर में शिवभक्ति का वातावरण बना रहता है।

क्या है मंदिर की पौराणिक कथा?

कहानी शुरू होती है प्रजापति दक्ष से, जिन्होंने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया था। लेकिन उन्होंने जानबूझकर अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब उनकी पुत्री सती को यह बात पता चली, तो उन्होंने यज्ञ में जाने की जिद की। भगवान शिव के मना करने के बावजूद सती वहां गईं और वहां अपने पिता से शिव का अपमान होते देख अत्यंत दुखी हो गईं। आहत होकर उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर प्राण त्याग दिए।

शिव का प्रलयकारी क्रोध

सती की मृत्यु से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपनी जटाओं से वीरभद्र को उत्पन्न किया और यज्ञ स्थल पर भेजा। वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया। बाद में देवी-देवताओं के अनुरोध पर शिव ने दक्ष को बकरे का सिर देकर पुनः जीवनदान दिया। अपनी गलती मानते हुए दक्ष ने शिव से क्षमा मांगी और भोलेनाथ ने उन्हें क्षमा कर दिया। तभी से यह स्थान शिव और दक्ष दोनों के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मंदिर की विशेषताएं

यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्व रखता है। मंदिर परिसर में भगवान विष्णु के पांव के निशान भी हैं, जिन्हें श्रद्धालु गहरे विश्वास के साथ पूजते हैं। मंदिर के पास बहती गंगा नदी के घाट को “दक्षा घाट” कहा जाता है। एक और मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का शिवलिंग पाताल लोक से जुड़ा हुआ माना जाता है, जो इसे और भी रहस्यमय बनाता है।

निर्माण का इतिहास

इस मंदिर का निर्माण सन 1810 में रानी धनकौर द्वारा कराया गया था। बाद में 1962 में इसका पुनर्निर्माण किया गया। आज यह मंदिर एक भव्य तीर्थस्थल के रूप में विख्यात है, जहां हर साल विशेषकर सावन में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है।