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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुरू होने वाला धन की देवी का पर्व धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धनतेरस को धन त्रयोदशी और धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस के दिन पाँच देवताओं की पूजा की जाती है: गणेश, देवी लक्ष्मी, ब्रह्मा, विष्णु और महेश। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी एक कलश लेकर अवतरित हुई थीं और इसी के प्रतीक के रूप में धन और सौभाग्य बढ़ाने के लिए बर्तन खरीदने की परंपरा भी शुरू हुई।

देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था। 
श्री लक्ष्मीनारायण एस्ट्रो सॉल्यूशन अजमेर की निदेशक, ज्योतिषाचार्य एवं टैरो कार्ड रीडर नितिका शर्मा ने बताया कि चिकित्सा के जनक भगवान धन्वंतरि की जयंती यानि धनतेरस का पर्व इस बार 18 अक्टूबर 2025 को मनाया जा रहा है।

कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि और देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था, इसीलिए धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धनतेरस दिवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन नई चीज़ें खरीदने से धन में 13 गुना वृद्धि होती है।

बर्तन खरीदने की परंपरा क्यों है?
धनतेरस, जिसे धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है, पाँच दिवसीय दिवाली उत्सव का पहला दिन है। दिवाली का त्योहार धनतेरस से शुरू होता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।

इसी वजह से हर साल धनतेरस पर बर्तन खरीदने की परंपरा निभाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भी धनतेरस पर सोना, चांदी, बर्तन, जमीन या संपत्ति की शुभ खरीदारी करता है, उसके धन में तेरह गुना वृद्धि होती है।

इस दिन वैद्यगण अमृतमय देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। इसी दिन से भगवान यमराज के निमित्त दीप जलाने की परंपरा शुरू होगी और यह पांच दिनों तक जलती रहेगी। इस दिन खरीदे गए सोने या चांदी के बर्तन अक्षय सुख प्रदान करते हैं। त्रयोदशी तिथि इसी समय तक रहेगी।

त्रयोदशी तिथि प्रारंभ 18 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:18 बजे से.

त्रयोदशी तिथि 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 1:51 बजे समाप्त हो रही है.

रोग-शोक से मुक्ति दिलाता है यमदीप
ज्योतिषाचार्य नितिका शर्मा ने बताया कि धनतेरस पर यमदीप भी जलाए जाएंगे। रोग, शोक, भय, दुर्घटना और मृत्यु से बचने के लिए धनतेरस की शाम को घर के बाहर यमदीप जलाने की परंपरा है। इस दिन धन्वंतरि ने अकाल मृत्यु से बचने के लिए यमदीप जलाने का महत्व बताया था, साथ ही सौ प्रकार की मृत्यु के बारे में भी जानकारी दी थी।

धनतेरस पर शाम के समय यमराज को दीपदान करें। इसे "यम दीपदान" कहते हैं। अपने घर के मुख्य द्वार के बाहर गाय के गोबर से लीपें, फिर दो मिट्टी के दीयों में तेल भरकर उन्हें जलाएँ। दीप जलाते समय "दीपज्योति नमोस्तुते" मंत्र का जाप करें और दक्षिण दिशा की ओर मुख करें।

धनतेरस पर 'यम दीपदान' करने से परिवार के किसी भी सदस्य की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।

देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए रंगोली बनाई जाती है
। इस दिन देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है, जिसमें महालक्ष्मी के दो छोटे पैरों के निशान भी होते हैं। धनतेरस पर देवी लक्ष्मी के अलावा धन्वंतरि और कुबेर की भी पूजा की जाती है। इसी दिन समुद्र मंथन से धन्वंतरि का जन्म हुआ था।

प्राचीन काल में लोग इस दिन नये बर्तन खरीदते थे, उनमें दूध भरकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते थे।

देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इन चीजों का करें प्रयोग

ज्योतिषी
नितिका शर्मा बताती हैं कि शास्त्रों में धनतेरस पर पूजा सामग्री के रूप में पान का उपयोग करने की सलाह दी गई है। ऐसा माना जाता है कि पान में देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए धनतेरस और दिवाली की पूजा में इसका उपयोग शुभ माना जाता है।

सुपारी
धनतेरस की पूजा सुपारी के बिना अधूरी है। सुपारी को ब्रह्मा, यम, वरुण और इंद्र का प्रतीक माना जाता है। धनतेरस की पूजा में इस्तेमाल की गई सुपारी को अपने खजाने में रखना लाभदायक होता है।

धनतेरस पर साबुत
धनिया खरीदकर देवी लक्ष्मी को अर्पित करें। इससे आपकी सभी आर्थिक समस्याएं दूर होंगी।

बताशा और धानी
पताशा देवी लक्ष्मी का प्रिय भोग है। ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी की पूजा में बताशा इस्तेमाल करने से हर समस्या का समाधान होता है। इस दिन खील खरीदना ज़रूरी है। इससे धन और समृद्धि बनी रहती है।

डिवो 
टैरो कार्ड रीडर नितिका शर्मा कहती हैं कि पूजा से पहले देवी के सामने दीया जलाना न भूलें। इससे यमराज प्रसन्न होते हैं।

देवी लक्ष्मी, कुबेर और भगवान धन्वंतरि की पूजा करते समय कपूर
जलाना चाहिए। कपूर जलाने से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा आती है।

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