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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : एआईएमआईएम प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी के अपने जिले दरभंगा की तीन विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने की खबर से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। महागठबंधन के घटक दलों में अभी से रणनीति बनाने की होड़ शुरू हो गई है।

हालांकि यह साफ नहीं है कि कौन सा उम्मीदवार किस क्षेत्र से उतरेगा, लेकिन राजद, कांग्रेस और वामदल अपने-अपने तरीकों से मुकाबला तय करने में जुट गए हैं।

आम मतदाताओं में भी ओवैसी के कदम पर चर्चा शुरू हो गई है। जाले, गौड़ाबौराम और केवटी विधानसभा क्षेत्रों से पार्टी उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने की खबर से मोहल्लों और गांवों में बहस छिड़ गई है। लोग चर्चा कर रहे हैं कि कौन कहाँ जीत सकता है और किसकी जीत या हार पर इसका असर होगा।

विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के युवा वर्ग में ओवैसी के प्रत्याशियों के समर्थन और विरोध की आवाजें तेज होने लगी हैं। यह पहली बार होगा जब दरभंगा जिले में ओवैसी के उम्मीदवार सीधे मतदाताओं से वोट मांगेंगे।

पार्टी प्रमुख स्वयं दरभंगा में जनसभा करके युवाओं को प्रभावित करेंगे। उनके भाषण के बाद अल्पसंख्यक मतदाताओं में जो रुझान बनेगा, उसे संभालना मुश्किल होगा।

हालांकि, जिले की तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा पर मतभेद भी हैं। कुछ लोग इसे भाजपा और उसके सहयोगियों को फायदा पहुँचाने वाली रणनीति बता रहे हैं। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि भाजपा के डर के सहारे मुस्लिम वोट को हमेशा नहीं लिया जा सकता।

दरअसल, जब ओवैसी ने पहले उम्मीदवार नहीं उतारे थे, तब भी जिले की 10 में से नौ विधानसभा सीटों पर भाजपा और उसके सहयोगियों की जीत हुई थी।

गौड़ाबौराम में पहली बार उड़ाएगी मजलिस की पतंग

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मधुबनी से ओवैसी ने अपना प्रत्याशी उतारा था। जाले और केवटी विधानसभा क्षेत्र भी मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। उस चुनाव में प्रचार ज्यादा नहीं हुआ था, फिर भी जाले और केवटी के मुस्लिम गांवों में मजलिस का चुनाव चिह्न पहचान में आया।

अब दरभंगा लोकसभा क्षेत्र के गौड़ाबौराम विधानसभा क्षेत्र में पहली बार मजलिस के उम्मीदवार पतंग चिह्न के जरिए मतदाताओं के घर तक पहुंचेंगे।

जानकारी के अनुसार, जाले और केवटी में लगभग 50-50 हजार और गौड़ाबौराम में करीब 40 हजार अल्पसंख्यक मतदाता हैं। इस बार ओवैसी के कदम से इन इलाकों की राजनीतिक तस्वीर काफी बदल सकती है।

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