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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण को लेकर चल रहा विवाद अब गंभीर रूप लेता जा रहा है। यूपी पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के हजारों कर्मचारी निजीकरण की आशंका और अपनी विभिन्न मांगों को लेकर सड़क पर उतरने की धमकी दे रहे हैं। उनका आरोप है कि उन्हें ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा पर भरोसा नहीं रहा और अब उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधे इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।

'विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति' ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया तो राज्य में व्यापक स्तर पर कार्य बहिष्कार और हड़ताल शुरू की जाएगी, जिससे बिजली आपूर्ति ठप हो सकती है। कर्मचारियों का कहना है कि पूर्व ऊर्जा मंत्री के साथ अक्टूबर 2020 में एक समझौता हुआ था, जिसमें निजीकरण की प्रक्रिया को रोकने और कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखने पर सहमति बनी थी। हालांकि, उनका आरोप है कि वर्तमान ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा उस समझौते को मानने से इनकार कर रहे हैं।

कर्मचारी संगठनों का दावा है कि निजीकरण केवल उपभोक्ताओं के लिए महंगी बिजली और कर्मचारियों के शोषण का कारण बनेगा। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों जैसे ओडिशा, कानपुर, वाराणसी और आगरा में हुए बिजली निजीकरण के पुराने 'फेल मॉडल' का हवाला दिया है, जहां निजी कंपनियों के आने से न तो सेवा में सुधार हुआ और न ही बिजली दरें कम हुईं, बल्कि अक्सर बढ़ ही गईं।

संघर्ष समिति के नेताओं का कहना है कि वे लगातार अपनी चिंताएं ऊर्जा मंत्री तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। इस अविश्वास के माहौल के कारण, उन्होंने अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से व्यक्तिगत रूप से इस मामले की कमान संभालने की अपील की है। कर्मचारियों का मानना है कि केवल मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप ही इस गतिरोध को खत्म कर सकता है और प्रदेश के लाखों उपभोक्ताओं तथा बिजली कर्मियों के भविष्य को सुरक्षित कर सकता है।

फिलहाल, पूरा उत्तर प्रदेश सरकार और कर्मचारियों के बीच होने वाली अगली बातचीत पर नजर रखे हुए है। अगर कोई समाधान नहीं निकलता है तो आने वाले दिनों में राज्य में बिजली संकट और गहरा सकता है।