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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है और अब इसमें अमेरिका भी कूद पड़ा है। अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं, जिससे वैश्विक स्थिति और चिंताजनक हो गई है। इस बीच, इस बात का भी डर है कि कहीं वे अटकलें सच न साबित हो जाएं, जिनमें कहा जा रहा है कि ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है, जो पूरी दुनिया के लिए सबसे अहम तेल मार्गों में से एक है और यह कदम दुनिया के सामने बड़ा संकट खड़ा कर सकता है। आइए जानते हैं होर्मुज क्यों अहम है और इसके बंद होने पर क्या असर होगा?

ईरान पर अमेरिकी हवाई हमलों से चिंता बढ़ी

सबसे पहले बात करते हैं ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध में अमेरिका के उतरने से बिगड़ते हालात की। अमेरिका अब इस युद्ध में ईरान के खिलाफ खुलकर सामने आ गया है और उसने उसके तीन मुख्य परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं। इनमें फोर्डो, नतांज और इस्फ़हान शामिल हैं और खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बारे में बयान दिया है।

हालांकि, उन्होंने इस कदम को अमेरिकी सेना की ताकत बताया है और यह भी कहा है कि अब शांति का समय है। लेकिन, यह युद्ध अभी थमता नहीं दिख रहा है और इससे दुनिया की चिंता बढ़ गई है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, 'अमेरिकी सैन्य कार्रवाई पर गहरी चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि पहले से ही तनावपूर्ण माहौल में यह अमेरिकी हमला अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है।'

विदेश मामलों के विशेषज्ञ रोबिंदर सचदेव ने कहा कि अगर होर्मुज जलडमरूमध्य बंद होता है तो भारत को निश्चित रूप से नुकसान होगा। दुनिया का करीब 20 फीसदी कच्चा तेल और 25 फीसदी प्राकृतिक गैस यहीं से होकर गुजरती है। भारत को नुकसान होगा क्योंकि तेल की कीमतें बढ़ेंगी, महंगाई बढ़ेगी और अनुमान है कि कच्चे तेल की कीमत में हर दस डॉलर की बढ़ोतरी से भारत की जीडीपी को 0.5 फीसदी का नुकसान होगा।

तेल व्यापार का 26 प्रतिशत हिस्सा 'होर्मुज जलडमरूमध्य' से होकर गुजरता है

इजरायल से युद्ध के बीच इजरायल पहले ही होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की चेतावनी दे रहा है। हालांकि विशेषज्ञ इस कदम को आसान नहीं बता रहे थे, लेकिन अब इजरायल और अमेरिका के हमलों के बाद आशंकाएं बढ़ गई हैं कि ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। यह एक प्रमुख समुद्री तेल मार्ग है, जिस पर ईरान का नियंत्रण है और यह एकमात्र मार्ग भी है, जिसके जरिए खाड़ी देशों से तेल की आपूर्ति होती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक दुनिया का 26 फीसदी कच्चे तेल का व्यापार इसी मार्ग से होता है और अगर इसे बंद किया जाता है तो इसका असर अमेरिका और भारत समेत कई यूरोपीय देशों पर साफ तौर पर देखा जा सकता है।

जैसा कि बताया गया है, होर्मुज जलडमरूमध्य वैश्विक कच्चे तेल व्यापार के एक बड़े हिस्से के परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है, जो इसे दुनिया के सबसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक बनाता है। इस मार्ग में कोई भी रुकावट विश्व तेल बाजारों को बाधित कर सकती है और कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल ला सकती है। हाल ही में, ईरानी सांसद अली यज़दीका ने खुले तौर पर कहा कि अगर अमेरिका इजरायल के समर्थन में ईरान के साथ युद्ध में शामिल होता है, तो वह दबाव बनाने के लिए कच्चे तेल के व्यापार को बाधित करने के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है।

होर्मुज जलडमरूमध्य पर इसका क्या प्रभाव होगा?

अब बात करते हैं कि होर्मुज जलडमरूमध्य किस तरह वैश्विक संकट बन सकता है। दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण शिपिंग लेन में से एक, यह मार्ग लगभग 96 मील लंबा और अपने सबसे संकरे बिंदु पर 21 मील चौड़ा है। इसके दोनों ओर दो-दो मील चौड़ी शिपिंग लेन हैं, जहाँ ईरान नाकाबंदी कर सकता है। होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। अगर ईरान यह कदम उठाता है, तो कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी होगी क्योंकि शिपिंग कंपनियों की परिचालन लागत बढ़ जाएगी।

ऐसा इसलिए क्योंकि इस मार्ग के बंद होने से जहाजों को अपने मार्ग बदलने पड़ेंगे, जो लंबे और महंगे होंगे, जिससे माल ढुलाई की लागत और डिलीवरी का समय बढ़ जाएगा। पिछले हफ़्ते एक रिपोर्ट में जूलियस बेयर के अर्थशास्त्री और शोध प्रमुख नॉर्बर्ट रूकर ने भी कहा कि भू-राजनीतिक तनाव वापस आ गया है और कच्चे तेल की कीमतों में भी वृद्धि हुई है। इस बीच, तेल आपूर्ति की चिंताएँ निश्चित रूप से अपने चरम पर पहुँच रही हैं।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री इस बात से चिंतित नहीं हैं कि ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने के लिए कदम उठा सकता है। हालांकि, अमेरिकी हमले के बाद यह आशंका जरूर मजबूत हुई है। कच्चे तेल की कीमत पर नजर डालें तो ब्रेन क्रूड ऑयल की कीमत 77 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गई है, जबकि डब्ल्यूटीआई क्रूड ऑयल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल के आसपास कारोबार कर रही है। हाल ही में जेपी मॉर्गन ने अनुमान जताया था कि कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 120 डॉलर प्रति बैरल हो जाएगी, जबकि अब युद्ध के और खतरनाक हो जाने के बाद सिटी और डॉयचे बैंक समेत कई बड़े बैंकों और विश्लेषकों ने इसके 120-130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने की आशंका जताई है।

भारत में मुद्रास्फीति का खतरा

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर दिन करीब 37 लाख बैरल कच्चे तेल की खपत होती है और देश अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है और 40 फीसदी सिर्फ खाड़ी देशों से आयात करता है। ऐसे में अगर कच्चे तेल की आपूर्ति में किसी तरह की बाधा आती है तो यह भारत के साथ-साथ दूसरे देशों के लिए भी बड़ी परेशानी साबित हो सकती है। क्योंकि तेल विपणन कंपनियां कच्चे तेल की कीमत, माल ढुलाई शुल्क, रिफाइनरी लागत के आधार पर पेट्रोल और डीजल की कीमतें तय करती हैं।

इसके अलावा, उत्पाद शुल्क, वैट और डीलर कमीशन भी आम उपभोक्ता तक पहुंचने तक इसकी कीमतों में जुड़ता है। अगर कच्चे तेल की कीमत के कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ती हैं, तो परिवहन लागत बढ़ेगी और इसके कारण आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण आम लोगों के लिए महंगाई का खतरा बढ़ सकता है।