
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : वाराणसी के बहुचर्चित ज्ञानवापी प्रकरण में गुरुवार को एक अहम सुनवाई हुई। यह सुनवाई जिला न्यायाधीश प्रकाश तिवारी की अदालत में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की ओर से दाखिल निगरानी याचिका पर हुई थी। मसाजिद समिति ने एक प्रार्थना पत्र दायर कर कुछ अहम बिंदुओं को अदालत के समक्ष रखा। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने यह प्रार्थना पत्र स्वीकार कर लिया और इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 जुलाई की तारीख तय कर दी गई है।
प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि वर्ष 1991 में दाखिल उस वाद में हरिहर पांडेय नामक पक्षकार की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन उनके वारिसों को अब तक पक्षकार नहीं बनाया गया है। इसलिए, उनके नाम के आगे "मृत्यु हो चुकी है" लिखा जाना आवश्यक है, ताकि कानूनी प्रक्रिया सही ढंग से आगे बढ़ सके।
गौरतलब है कि 1991 में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ और अन्य याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी परिसर में मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजा का अधिकार देने की मांग को लेकर मामला दायर किया था।
इस मामले की सुनवाई फास्टट्रैक सिविल जज (सीनियर डिविजन) आशुतोष तिवारी की अदालत में हुई थी। सुनवाई के दौरान सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की ओर से अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए गए। उनका कहना था कि वक्फ ट्राइब्यूनल की स्थापना के बाद सिविल कोर्ट को इस मामले की सुनवाई का अधिकार नहीं है।
हालांकि, वादी पक्ष ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया कि यह विवादित क्षेत्र स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ मंदिर का हिस्सा है, इसलिए सिविल कोर्ट का क्षेत्राधिकार बनता है। इस पर अदालत ने 25 फरवरी 2020 को सुनाया कि यह मामला सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है और वक्फ बोर्ड व अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की आपत्तियां खारिज कर दी थीं।
अब उसी फैसले को चुनौती देते हुए अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जिला जज के समक्ष निगरानी याचिका दाखिल की है, जिस पर सुनवाई जारी है।