
Prabhat Vaibhav, Digital Desk: 13 जून को इजरायल और ईरान के बीच हालिया झड़प अब तक की सबसे घातक साबित हुई है। इजरायल की वायुसेना ने करीब 200 फाइटर जेट्स के साथ ईरान की परमाणु स्थलों, मिसाइल फैक्ट्रियों और ऊंचे स्तर के सैन्य अधिकारियों को निशाना बनाया। हमले के दौरान तेहरान और नतांज़ जैसे संवेदनशील इलाकों में जोरदार धमाके सुनाई दिए, जिसने पूरे क्षेत्र को दहला दिया।
ईरान का जवाब और चेतावनी
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने इस हमले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इजरायल को इसके गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। हमले के अगले ही दिन ईरान ने करीब 100 ड्रोन इजरायल की ओर दागे। इसके अलावा, ईरान के विदेश मंत्रालय ने मुस्लिम देशों से एकजुट होकर इजरायल के खिलाफ आवाज़ उठाने की अपील की है।
ईरानी विदेश मंत्रालय का बयान
ईरानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह हमला केवल ईरान पर नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र की शांति पर हमला है। उन्होंने इस्लामी देशों, गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य राष्ट्रों और शांति समर्थक देशों से अपील की कि वे इस क्रूरता का विरोध करें और एकजुट होकर इसका सामना करें।
युद्ध की पृष्ठभूमि पहले से तैयार थी
इस संघर्ष की नींव काफी पहले रखी जा चुकी थी। हाल के महीनों में ईरान और इजरायल के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा था। इजरायली खुफिया एजेंसियों का दावा है कि ईरान के पास अब 15 परमाणु बम बनाने लायक यूरेनियम मौजूद है। इसी आधार पर इजरायल ने इस हमले को 'राष्ट्रीय सुरक्षा' के लिहाज से जरूरी कदम बताया।
हालांकि, ईरान ने इस दावे को नकारते हुए कहा कि उसकी परमाणु गतिविधियां पूरी तरह शांतिपूर्ण हैं। साथ ही उसने इजरायल पर जानबूझकर आक्रामकता फैलाने और क्षेत्र में अस्थिरता लाने का आरोप लगाया। हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे संगठनों को ईरान का समर्थन भी इस संघर्ष को और जटिल बना रहा है।
अमेरिका की भूमिका और रुख
इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिका की भूमिका बेहद अहम लेकिन विरोधाभासी रही। एक ओर वह इजरायल का सबसे करीबी सहयोगी है, दूसरी तरफ उसने खुद को इस सैन्य कार्रवाई से अलग बताया। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि यह हमला इजरायल का एकतरफा फैसला था और अमेरिका की प्राथमिकता सिर्फ अपने सैनिकों की सुरक्षा है।
हालांकि, हमले से ठीक एक दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बयान दिया था कि "इजरायल हमला कर सकता है", लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई थी कि हालात काबू में रहेंगे। अमेरिका ने पहले ही खाड़ी के कई देशों से अपने गैर-जरूरी कर्मियों को निकाल लिया था और सैन्य संसाधनों को नए ठिकानों पर भेज दिया था।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह संघर्ष और गहरा होगा? क्या खाड़ी देश इस युद्ध में खुलकर उतरेंगे? और क्या यह पूरी दुनिया की शांति को खतरे में डाल सकता है? जवाब आने वाले दिनों में साफ़ होगा।