img

Prabhat Vaibhav,Digital Desk : लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस अब संगठनात्मक मजबूती पर ध्यान केंद्रित कर रही है। खासकर बूथ स्तर पर पार्टी की पकड़ मज़बूत करने के लिए नए सिरे से कमेटियों के गठन पर जोर दिया जा रहा है।

लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि पंजाब कांग्रेस की प्रदेश कार्यकारिणी 2016 के बाद से अब तक दोबारा नहीं बनी। आखिरी बार कैप्टन अमरिंदर सिंह के कार्यकाल में कमेटी गठित की गई थी। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष तीन बार बदले गए, लेकिन कार्यकारिणी की फाइल दिल्ली के दफ्तर में हर बार दब कर रह गई।

अब 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस ने एक बार फिर प्रदेश कार्यकारिणी के गठन को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। प्रदेश प्रभारी भूपेश बघेल इस दिशा में पूरी तरह सक्रिय नज़र आ रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस एक बार फिर से चार कार्यकारी अध्यक्षों का पुराना फॉर्मूला आज़माने की तैयारी में है। 2021 में नवजोत सिंह सिद्धू के अध्यक्ष बनने पर यह नीति अपनाई गई थी, जिसमें हर समुदाय से एक कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था—ओबीसी से संगत सिंह गिलजियां, जट सिख से कुलजीत नागरा, एससी से सुखविंदर सिंह डैनी और हिंदू समुदाय से पवन गोयल को जिम्मेदारी मिली थी।

हालांकि यह प्रयोग असफल रहा क्योंकि इनमें से कई नेता चुनाव लड़ने में व्यस्त हो गए। बाद में जब अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई, तो उनके साथ 9 सदस्यीय टीम बनाई गई। लेकिन धीरे-धीरे टीम के सदस्य या तो इस्तीफा दे गए या पार्टी छोड़ गए। आज की तारीख में कार्यकारिणी में केवल 5 सदस्य बचे हैं।

हाईकमान की सबसे बड़ी चिंता पंजाब में बढ़ती गुटबाज़ी को लेकर है। राजा वड़िंग संगठन में सक्रिय हैं, लेकिन गुटबाजी पर काबू नहीं पा सके हैं। यही वजह है कि पार्टी अब पुराने फार्मूले यानी चार कार्यकारी अध्यक्षों की रणनीति पर फिर से सोच रही है।

हालांकि, वड़िंग को हटाना कांग्रेस के लिए आसान फैसला नहीं होगा। एक तरफ उनका कार्यकाल तीन साल से ज़्यादा हो चुका है, वहीं वो लुधियाना से सांसद भी हैं। दूसरी ओर पार्टी में कुछ नेता वड़िंग को हटाने की मांग भी उठा रहे हैं।

बताया जा रहा है कि इसी मुद्दे को लेकर हाल ही में दिल्ली में कई बैठकों का दौर चला, और जल्द ही इसके नतीजे सामने आने की उम्मीद है।