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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : इस साल के दूसरे और आखिरी सूर्य ग्रहण को लेकर लोगों में काफी असमंजस की स्थिति है। दावा किया जा रहा है कि इस साल 2 अगस्त को पूर्ण सूर्य ग्रहण लगने वाला है, जिसमें दुनिया 6 मिनट के लिए अंधेरे में डूब जाएगी। ऐसा सूर्य ग्रहण अगले 100 सालों तक देखने को नहीं मिलेगा। इस नजारे को देखने के लिए लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है।

खास बात ये है कि 2 अगस्त को लगने वाला सूर्य ग्रहण 2025 में नहीं बल्कि 2027 में लगेगा। ऐसे में अब आइए जानते हैं कि इस साल का दूसरा सूर्य ग्रहण किस तारीख को लगने वाला है और इसे क्यों खास माना जा रहा है।

साल का दूसरा ग्रहण क्यों है खास? 
इस साल का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण 21 सितंबर 2025 को लगेगा। यह एक आंशिक सूर्य ग्रहण होगा। यह आश्विन मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या को रात 22:59 बजे शुरू होगा और 22 सितंबर को सुबह 03:23 बजे समाप्त होगा।

खास बात यह है कि इस साल के दूसरे सूर्य ग्रहण के दिन सर्वपितृ अमावस्या भी है। ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाते, इसलिए लोग असमंजस में हैं कि पितरों का श्राद्ध-तर्पण कैसे होगा। चिंता न करें, यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए पूजा-पाठ जारी रहेगा।

सूर्य ग्रहण का ज्योतिषीय महत्व: 
21 सितंबर को कन्या और फाल्गुनी नक्षत्र में सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रहण को एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है, इसका मानव जीवन और राशियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सूर्य ग्रहण का संबंध राहु-केतु से भी है, जो छाया ग्रह हैं और सूर्य के साथ युति होने पर ग्रहण दोष उत्पन्न करते हैं, जिसके कारण कई लोगों के जीवन में नकारात्मकता देखने को मिलती है।

ग्रहण दोष के प्रभाव से 
दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि होती है। देश-दुनिया पर प्राकृतिक आपदाओं का खतरा मंडराता है।
वैवाहिक जीवन अस्थिर हो जाता है।
परिवार के विकास में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, कभी-कभी गर्भपात भी हो सकता है।
पिता के साथ संबंधों में कटुता आने की संभावना बढ़ जाती है।
निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है।

वेदों में सूर्य ग्रहण:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हिंदू धर्म में ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता है। इस दौरान सभी प्रकार की पूजा-अर्चना वर्जित होती है। मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। भोजन दूषित होता है। ऐसे में ग्रहण के प्रभाव से बचने के लिए केवल मानसिक रूप से मंत्रों का जाप करना आवश्यक है।

अथर्ववेद में ग्रहण के दौरान सुरक्षा उपायों और मंत्रों का उल्लेख है। ग्रहण को आसुरी शक्तियों का प्रभाव माना जाता है और इनसे बचने के लिए मंत्र जाप करने की सलाह दी जाती है।

ऋग्वेद में, सूर्य ग्रहण का संबंध राक्षस स्वर्भानु से बताया गया है, जो बाद में भगवान विष्णु के चक्र से अलग होने के बाद राहु-केतु के नाम से जाना जाने लगा। अत्रि ऋषि ने "अत्रिर्देवतां देवभिः सपरायन्न सर्वभनोर्प हनद्विदत् तमः" मंत्र का जाप करके स्वर्भानु द्वारा फैलाये गये अंधकार को दूर किया।