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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : हिंदू धर्म में एकादशी की तिथि का अत्यंत विशेष स्थान है। साल भर में आने वाली 24 एकादशियों में से आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवशयनी एकादशी कहते हैं, का महत्व सबसे अधिक माना गया है। इस वर्ष यह पावन तिथि रविवार, 6 जुलाई 2025 को पड़ रही है। मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह अवधि चातुर्मास कहलाती है, जो देवउठनी एकादशी तक चलती है।

इन चार महीनों में धार्मिक कार्यों, विवाह आदि शुभ संस्कारों पर विराम लगता है। इस दौरान साधक साधना, भक्ति, व्रत और संयम के मार्ग पर चलते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल में तुलसी पूजन का महत्व और भी बढ़ जाता है।

तुलसी: विष्णु की परमप्रिय

तुलसी को देवी स्वरूप माना गया है और भगवान विष्णु की अति प्रिय भक्त एवं सखी के रूप में पूजी जाती हैं। तुलसी का पौधा केवल औषधीय या पर्यावरणीय दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक ऊर्जा और शुद्धता का स्रोत भी है।

एकादशी पर तुलसी से जुड़े नियम:

देवशयनी एकादशी के दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए:

इस दिन तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

तुलसी पर जल अर्पित नहीं करना चाहिए।

तुलसी के समीप श्रीहरि विष्णु की पूजा करें और तुलसी स्तोत्र का पाठ करें।

तुलसी स्तोत्र का महत्व:

श्री पुण्डरीक द्वारा रचित तुलसी स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली स्तुति है, जिसमें तुलसी जी की महिमा, शक्ति और पुण्यफल का वर्णन है। यह स्तोत्र बताता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और वह सांसारिक पापों से मुक्त होता है।

तुलसी को महालक्ष्मी का स्वरूप, हरिप्रिया, धर्म्य, यशस्विनी, पापहारिणी और पुण्यदायिनी कहा गया है। उनका पूजन घर में सुख, समृद्धि, शांति और आध्यात्मिक उन्नति लाता है।