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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, मंगलवार को उत्तरकाशी में ढाई घंटे के अंतराल में तीन बार बादल फटे, जिससे धराली में भारी नुकसान हुआ। हर्षिल और गंगना के पास सुक्की टैप और आर्मी कैंप हर्षिल में भी आपदा जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पहली बादल फटने की घटना दोपहर 1 बजे हुई, जिससे खीरगंगा नदी में कीचड़ और पानी भर गया। इससे 15 आवासीय मकान नष्ट हो गए। जबकि 6 से 7 दुकानों को भी नुकसान पहुँचा। दर्जनों लोग लापता बताए जा रहे हैं।

दूसरी बादल फटने की घटना दोपहर 3 बजे हर्षिल और गंगाणा के बीच सुक्की टैप के पास हुई, जहाँ जान-माल के नुकसान का आकलन किया जा रहा है। इसके बाद तीसरी घटना दोपहर 3:30 बजे हुई, जो हर्षिल आर्मी कैंप के पास हुई। जिससे बाढ़ जैसे हालात बन गए। भागीरथी नदी का जलस्तर बढ़ने से बने तालाब के कारण हर्षिल हेलीपैड जलमग्न हो गया। आगे भी मानसून के दौरान ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी। अभी तक बादल फटने की घटनाओं को रोकने का कोई वैज्ञानिक उपाय नहीं मिल पाया है, इसलिए सतर्कता ही एकमात्र उपाय है।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज), नैनीताल के वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र सिंह बताते हैं कि पिछले डेढ़ दशक से बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। धराली की पहाड़ियां खड़ी और काफी ऊंची हैं। बादल इनके बीच फंस जाते हैं। बादलों में नमी अधिक होने से ये फट जाते हैं। ऐसे हालात कभी-कभार ही बनते हैं, लेकिन जब बनते हैं तो खतरनाक मंजर सामने आता है। मंगलवार को धराली में यही देखने को मिला। धराली क्षेत्र की भौगोलिक संरचना बादल फटने के लिए अनुकूल है।

अगर पहाड़ की तलहटी में बस्तियाँ न होतीं, तो जान-माल का इतना नुकसान न होता। मानसून बादल फटने में सहायक होता है और ज़्यादातर घटनाएँ इसी दौरान होती हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में कई जगहों पर ऊँचे पहाड़ एक-दूसरे से सटे होते हैं, जिससे बादल फटने की घटनाओं को न्योता मिलता है।

डॉ. नरेंद्र सिंह ने कहा कि बादल फटने की घटनाओं को रोकने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक उपाय नहीं खोजा जा सका है। इससे बचाव के लिए और अधिक सावधानी बरतने की ज़रूरत है। पहाड़ों में घर बनाने से पहले पर्यावरणीय परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा और भौगोलिक परिस्थितियों को भी समझना होगा। बादल फटने की संभावना वाले क्षेत्रों को दूर रखना होगा।