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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : पूर्वी अफ्रीकी देश इथियोपिया में 12,000 साल बाद फटे हेल गुबी ज्वालामुखी से निकला विशाल राख का बादल अब भारत के आसमान तक पहुँच गया है, जिससे उड़ान संचालन के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो गई है। घने राख के बादल के कारण कई अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दी गईं। देखते ही देखते नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने एयरलाइन कंपनियों को प्रभावित इलाकों से दूर रहने, रूट बदलने और सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं। जारी बयान के मुताबिक, इसका सबसे ज़्यादा असर अब तक दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के इलाकों में महसूस किया जा रहा है।

गौरतलब है कि रविवार को हेली गुबी ज्वालामुखी लगभग 12,000 वर्षों में पहली बार फटा। विस्फोट से उत्पन्न राख लाल सागर को पार करते हुए यमन और ओमान से होते हुए अब अरब सागर और उत्तर भारत की ओर बढ़ रही है। घने राख के गुबार अब दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ऊपर से गुज़र रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चूँकि राख बहुत ऊँचाई पर है, इसलिए ज़मीनी स्तर पर वायु गुणवत्ता में गिरावट की संभावना कम है। हालाँकि, निगरानी जारी है।

राख का
बादल बहुत तेज़ी से आगे बढ़ा। विस्फोट के कुछ ही घंटों के भीतर, यह बादल 14 किलोमीटर (करीब 45,000 फीट) की ऊँचाई तक पहुँच गया। तेज़ ऊपरी हवाएँ (जेट स्ट्रीम) इसे पूर्व की ओर ले गईं। 24 नवंबर को यह राजस्थान में दाखिल हुआ और 25 नवंबर तक यह दिल्ली, जयपुर, जैसलमेर, पंजाब और हरियाणा तक पहुँच गया। इसका कुल फैलाव अब 54 लाख वर्ग किलोमीटर तक पहुँच गया है - जो पूरे ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप के बराबर है।

कई उड़ानें रद्द कर दी गई हैं 
, कई एयरलाइनों ने खतरे को देखते हुए अपनी उड़ानें रद्द कर दी हैं या उनका मार्ग बदल दिया है। अकासा एयर ने 24-25 नवंबर के लिए जेद्दा, कुवैत और अबू धाबी की सभी उड़ानें रद्द कर दी हैं। केएलएम रॉयल डच एयरलाइंस ने अपनी एम्स्टर्डम-दिल्ली (केएल 871) और दिल्ली-एम्स्टर्डम (केएल 872) सेवाएँ रद्द कर दी हैं।

इस बीच, इंडिगो ने यात्रियों को सावधानी बरतने की सलाह दी और कई उड़ानों के रूट और संचालन में बदलाव किया। इंडिगो ने एक्स को बताया कि ऐसी खबरें चिंता का विषय हो सकती हैं, लेकिन यात्रियों की सुरक्षा उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।

ये असर कब तक रहेगा? 
अच्छी खबर यह है कि राख के साथ आने वाला सल्फर डाइऑक्साइड बादल बन सकता है और 27-28 नवंबर को हल्की बारिश ला सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो दिल्ली का स्मॉग भी छंट जाएगा। कुल मिलाकर, 27 नवंबर तक राख कम हो जाएगी और 28 नवंबर तक सब कुछ सामान्य हो जाएगा।