Prabhat Vaibhav,Digital Desk : सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों में इस बार असदुद्दीन ओवैसी महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभर सकते हैं। कटिहार के बलरामपुर में हुई उनकी सभा ने यह साफ कर दिया है। सभा स्थल पर उमड़ी भारी भीड़ और लोगों की गहरी दिलचस्पी ने माहौल को गरमा दिया है।
सभा में शामिल लोगों के चेहरे पर एक अलग ही उत्साह दिखा। सिर्फ सुनने या देखने नहीं, बल्कि समर्थन जताने के लिए भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। जहागीर आलम ने सभा में साफ कहा – “इस बार वोट इन्हीं को देंगे।” वहीं, मो. रेजाबुल ने कांग्रेस और लालू-नीतीश के लंबे अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि जब हर समाज अपने नेता को वोट देता है, तो हम अपनी बिरादरी का साथ देने में क्यों पीछे रहें? यही सोच वहां मौजूद कई लोगों में साफ नजर आई।
यह बढ़ता रुझान महागठबंधन के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं। बलरामपुर सीट पर फिलहाल भाकपा (माले) का कब्जा है। 2015 के चुनाव में ओवैसी के उम्मीदवार को सिर्फ सात हजार वोट मिले थे। 2020 में यहां से AIMIM ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा, लेकिन बरारी और मनिहारी में किस्मत आजमाई थी। बरारी में उम्मीदवार को करीब 6600 और मनिहारी में लगभग 2500 वोट मिले।
ये आंकड़े बताते हैं कि पहले AIMIM को कटिहार की धरती पर खास समर्थन नहीं मिला था। मगर इस बार तस्वीर बदलती हुई दिख रही है। जिले की सात सीटों में से चार पर फिलहाल एनडीए और तीन पर महागठबंधन का कब्जा है। खास बात यह है कि एनडीए के पास वाली सीटों – कटिहार, बरारी और प्राणपुर – पर पिछली बार जीत का अंतर 10% से भी कम रहा था।
महागठबंधन इन्हीं सीटों पर सेंध लगाने की तैयारी कर रहा था, लेकिन अब ओवैसी के मैदान में उतरने से उनका गणित गड़बड़ा सकता है। ऊपर से AIMIM को साथ न लेने की वजह से ओवैसी लगातार लालू और तेजस्वी यादव पर निशाना साध रहे हैं। ऐसे में सीमांचल की राजनीति का समीकरण इस बार पूरी तरह बदल सकता है।




