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चुनावी रेवड़ियां बांटने की संस्कृति के खिलाफ काशी में सामाजिक कार्यकर्ता मुखर, बताया देशहित के लिए घातक

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वाराणसी। चुनावी रेवड़ियां बांटने की संस्कृति के खिलाफ काशी में सामाजिक कार्यकर्ता मुखर होने लगे हैं। बुधवार को सामाजिक संस्था सुबह-ए-बनारस क्लब के बैनर तले लोक-लुभावने सपने दिखाने वाली चुनावी वादों पर अंकुश लगाने की मांग कर कार्यकर्ताओं ने मैदागिन चौराहे पर इसके खिलाफ लोगों को जागरूक किया।

इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के चुनावी वादों का मुद्दा जटिल होता जा रहा है। शीर्ष अदालत ने भी साफ तौर पर कह दिया है कि इस संस्कृति के चलते अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान हो रहा है। मुफ्त की रेवड़ी बांटने की संस्कृति देश के विकास के लिए खतरनाक हो सकती है। सियासी पार्टियों को इस पर गंभीरता से विचार करना ही होगा।

क्लब के पदाधिकारी मुकेश जायसवाल ने कहा कि देश-प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने के लिए चुनावी दौर में जिस प्रकार से आज की राजनीति में वोटरों को लुभावने के लिए लोक-लुभावने वादे किए जा रहे हैं, आने वाले दिनों में देश हित में आर्थिक दृष्टिकोण से इसके गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे। उन्होंने कहा कि देश के तकरीबन सभी राज्यों में लगभग सभी पार्टियों की ओर से चुनावी मौसम में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। एक आम मतदाता को आकर्षित करने के लिए आज के समय में यह सबसे अच्छा उपाय भी है।

उन्होंने कहा कि इस देश के सभी नागरिकों को इस बात पर जरूर सोचना चाहिए कि मुफ्त में दी गई कोई भी सुविधा देश की अर्थव्यवस्था पर कितना गलत असर डालता है। इसके कारण कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का कार्य लंबित रह जाता है। देश में मुफ्त की कोई भी सुविधा देने से अर्थव्यवस्था की कमर ही टूटती है जो बिल्कुल भी सही नहीं है। एक आम मतदाता को इस बात पर विचार करना ही चाहिए कि अगर कोई पार्टी किसी भी तरह का लालच दे रही है तो एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते फर्ज बनता है कि वह अपनी जिम्मेदारी को समझ कर सभी राजनीतिक पार्टियों के मुफ्तखोरी को त्याग कर खुद को स्वावलंबी बनाएं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी चार चांद लग जाएगा।

कार्यक्रम में कमला प्रसाद सिंह, नंदकुमार टोपी वाले, प्रहलाद तिवारी, अनिल विश्वकर्मा, राजकुमार सिंह, विजय गुप्ता, राजेश सिंह, पप्पू यादव, विजय जायसवाल आदि शामिल रहे।

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