Prabhat Vaibhav,Digital Desk : बिहार विधानसभा चुनाव ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब तक नीतीश कुमार राजनीति में सक्रिय रहेंगे, उन्हें हराना आसान नहीं है। विपक्षी महागठबंधन के नेताओं द्वारा मानसिक रूप से बीमार कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने ऐसी शिकस्त दी कि तेजस्वी यादव पूरी तरह बौखला गए। इस बार नीतीश की चुनावी रणनीति में डबल 'एम' (M) एक अहम एक्स-फैक्टर साबित हुआ है।
नीतीश ने क्या कदम उठाया?
बिहार में एनडीए की सत्ता में वापसी में डबल 'एम' (M) की अहम भूमिका रही है। नीतीश कुमार ने इस फैक्टर की अहमियत बहुत पहले ही समझ ली थी और इसी के चलते बिहार में शराबबंदी लागू की गई थी। इसी फैसले के तहत नीतीश ने अपने 'एम' फैक्टर को मज़बूत करने के लिए महिला रोज़गार योजना शुरू की, जिसके तहत परिवार की हर महिला को व्यवसाय शुरू करने के लिए 10,000 रुपये दिए गए। शुरुआती व्यवसाय सफल होने पर उन्हें 2 लाख रुपये तक की मदद मिलेगी।
क्या नीतीश बीजेपी से एक कदम आगे निकल गए हैं?
पिछले कुछ चुनावों पर गौर करें तो महिलाएं पुरुषों से ज़्यादा वोट दे रही हैं। इस चुनाव को अलग कहा जा रहा है। बीजेपी ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा समेत कई राज्यों में एक फॉर्मूला अपनाया था, जिसमें चुनाव से पहले महिलाओं के खातों में पैसे जमा किए जाते थे। नीतीश कुमार ने इस फॉर्मूले को एक कदम आगे बढ़ाते हुए महिलाओं के खातों में एकमुश्त 10,000 रुपये जमा कर दिए। इस फैसले से राज्य की महिलाएं लालू के लालटेन से दूर हो गईं और तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने के सपने चकनाचूर हो गए।
इतना ही नहीं, यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने राजद के दूसरे 'एम' फैक्टर, यानी मुसलमानों को भी कमज़ोर कर दिया है। कुछ जगहों पर जेडीयू को वोट देने के बाद मुसलमान राजद से छिटक गए हैं, यानी राजद को 'एम' से दोहरी मार पड़ी है। एक तरफ़ महिलाएं अलग-थलग पड़ गईं, तो दूसरी तरफ़ मुसलमान भी अलग-थलग पड़ गए।
नीतीश ने अपनी रणनीति 20 साल पहले शुरू की थी!
2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, तो उनकी नज़र अपने वोट बैंक पर थी और उन्होंने राजद के 'एम' फ़ैक्टर का मुक़ाबला करने के लिए अपने 'एम' फ़ैक्टर को मज़बूत करना शुरू कर दिया था। सरकार बनते ही उन्होंने स्कूली लड़कियों को साइकिल देने की योजना शुरू की। बाद में, उन्होंने 2016 में राज्य में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसकी काफ़ी आलोचना हुई।
जब नीतीश को लगा कि नोटबंदी का असर कम होने लगा है, तो उन्होंने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत और सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया। इस कदम ने महिलाओं को राजद और कांग्रेस से दूर कर दिया, और अब, चुनाव से पहले, महिलाओं के खातों में ₹10,000 जमा करने का उनका कदम कामयाब साबित हुआ है। हालाँकि तेजस्वी यादव ने भी सरकार बनने पर महिलाओं के खातों में ₹30,000 जमा करने का वादा किया था, लेकिन महिलाओं ने नीतीश कुमार पर भरोसा जताया है।
किस पार्टी ने कितनी सीटें जीतीं?
भाजपा ने 89, जदयू ने 85, राजद ने 25 और चिराग पासवान की पार्टी ने 19 सीटें जीतीं। कांग्रेस ने सबसे खराब प्रदर्शन किया और केवल छह सीटें जीतीं। वाम दलों का भी सफाया हो गया। हालाँकि, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने अपना पिछला प्रदर्शन दोहराया। जीतन राम मांझी की पार्टी ने पाँच, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने चार और वाम दलों ने संयुक्त रूप से चार सीटें जीतीं।




