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हरतालिका तीज का व्रत रखने से सुहागिनों को मिलता है अखंड सौभाग्य

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धर्म डेस्क। हरतालिका तीज का व्रत भादौं मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन रखा जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती है। हरितालिका तीज पर महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र की कामना लिए माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना के साथ ही निर्जला व्रत रखती हैं। इस बार हरतालिका तीज का पर्व 5 सितंबर को दोपहर 12:21 बजे शुरू होगा और 6 सितंबर को शाम 3:01 बजे समाप्त होगा। इसलिए उदया तिथि के अनुसार 6 सितंबर को व्रत किया जाएगा और पूजा का शुभ मुहूर्त 6 सितंबर को सुबह 6:01 से 8:32 तक रहेगा।

शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए के लिए ये निर्जला व्रत रखा था। तभी से सुहागिनें हर वर्ष हरतालिका तीज का व्रत रखती आ रही हैं। इस दिन व्रती महिलायें सुबह स्नान आदि के बाद भगवान शिव व माता पार्वती और गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमा बनाएं। इसके बाद पहले भगवान गणेश की पूजा करें। इसके बाद भगवान शिव को बेलपत्र और माता पार्वती को श्रृंगार का सामान चढ़ाएं और सभी को वस्त्र आदि अर्पित करें।  इसके बाद हरतालिका तीज व्रत कथा का पाठ करें।

कथा के बाद सबसे पहले गणेशजी की आरती करें और फिर भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। इसके बाद प्रसाद का वितरण करें। हरतालिका तीज पर वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए भगवान गणेश को सूखे मालपुआ चढ़ाया जाता है। इससे वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ती है। इसी तरह कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए हरतालिका तीज की शाम को शिव-पार्वती के मंदिर में घी के दीपक जलाती हैं।  

हरतालिका तीज पर सौभाग्य प्राप्ति के लिए मां पार्वती को खीर का भोग लगाना न भूलें। हरतालिका तीज का महत्व बहुत ही खास माना जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं और मिट्टी की भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा बनाकर कठोर तप करती हैं। इस व्रत में पानी नहीं पिया जाता है। साथ ही रात्रि में जागकर भगवान शिव और माता पार्वती का जागरण किया जाता है। कहीं कहीं पौरुष भी दांपत्य जीवन को मधुर बनाने के लिए यह व्रत रखते हैं। 
 

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