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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : यमुनाघाटी के गैर गांव, गंगटाड़ी, कुथनौर सहित रवांई, जौनपुर और जौनसार क्षेत्रों में पारंपरिक मंगसीर की बग्वाल के अवसर पर देवलांग पर्व इस वर्ष भी पूरे उत्साह और भक्ति भाव के साथ मनाया गया। सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार ग्रामीणों ने विशाल देवदार वृक्ष को खड़ा कर विधि-विधान के साथ अग्नि को समर्पित किया, जो इस पर्व की सबसे महत्वपूर्ण रस्म मानी जाती है।

स्थानीय मान्यता के अनुसार यमुनाघाटी के लोग भगवान राजा रघुनाथ को अपना इष्ट देव मानते हैं और देवलांग पर्व को ‘अंधकार पर प्रकाश की विजय’ के प्रतीक के रूप में मनाते हैं। ग्रामीण कई दिनों की तैयारी के बाद जंगल से विशालकाय देवदार का पेड़ लाते हैं।

परंपरा के मुताबिक 65 गांवों के लोग दो भागों—शाटी और पानसाई—में बंटकर देवदार के पेड़ पर सूखी लकड़ियों के गुच्छे बांधते हैं। इसके बाद डंडों की सहायता से पेड़ को खड़ा करके उसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती है। शंखनाद, ढोल-नगाड़ों की थाप और पारंपरिक नृत्यों के बीच श्रद्धालु भगवान राजा रघुनाथ की स्तुति करते हुए पर्व का आनंद लेते हैं।

स्थानीय लोग इस अवसर पर रघुनाथ मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और क्षेत्र की समृद्धि, कुशल-क्षेम और सुख-शांति की कामना करते हैं—यह यहां की प्राचीन परंपराओं में गहराई से रचा-बसा हिस्सा है।

सरकार द्वारा गैर गांव के देवलांग पर्व को राजकीय मेला घोषित किए जाने के बाद से संस्कृति विभाग की लोकनृत्य टीमें भी यहां नियमित रूप से प्रस्तुति देने पहुंचती हैं, जिससे आयोजन और भी भव्य हो गया है। गुरुवार शाम को गैर गांव के साथ-साथ गंगटाड़ी और कुथनौर में भी यह पर्व बेहद उत्साहपूर्ण माहौल में मनाया गया।

इस मौके पर जिपं सदस्य सुखदेव रावत, रोहित जुड़ियाल, पूजारी सियाराम गैरोला, मोहन गैरोला, प्रदीप गैरोला, लायबर सिंह कलुडा, पवन सिंह, सुरेंद्र सिंह रावत, धनवीर रावत, सोहन गैरोला समेत कई ग्रामीण उपस्थित रहे।