
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : सिगरेट ज़्यादा खतरनाक है या तंबाकू? यह सवाल पूछे जाने पर ज़्यादातर लोग सिगरेट का ज़िक्र करते हैं। हालाँकि, एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि तंबाकू हमारे शरीर को सिगरेट से कई गुना ज़्यादा नुकसान पहुँचाता है। दरअसल, सिगरेट का कुछ धुआँ हवा में उड़ जाता है, जबकि तंबाकू सीधे हमारे मुँह की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाता है। इससे घाव बनते हैं, जो धीरे-धीरे कैंसर में बदल जाते हैं। इसलिए, यह रिपोर्ट तंबाकू चबाने वालों के लिए एक चेतावनी है कि उनकी यह छोटी सी आदत उनकी जान भी ले सकती है।
अध्ययन से क्या पता चला?
एक वैश्विक अध्ययन में पाया गया है कि मुँह और गले का कैंसर दुनिया भर में रोज़ाना तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों में सबसे आम कैंसर है। इससे कैंसर कोशिकाएँ तेज़ी से बढ़ती हैं और पूरे मुँह में फैल जाती हैं। कई मामलों में, यह कैंसर गले तक भी फैल जाता है। अपने शोध में, वैज्ञानिकों ने पाया कि तंबाकू में पाए जाने वाले नाइट्रोसेमाइन (TSNA) और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) जैसे पदार्थ हमारी कोशिकाओं में मौजूद डीएनए को सीधे नुकसान पहुँचाते हैं, स्वस्थ कोशिकाओं को मारते हैं और कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। सिगरेट में निकोटीन और टार की मात्रा ज़्यादा होती है, जो हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुँचाते हैं। हालाँकि, इनका धुआँ शरीर या कोशिकाओं के सीधे संपर्क में नहीं आता, इसलिए यह तंबाकू से कम हानिकारक है।
कोई व्यक्ति नशे का आदी कैसे हो जाता है?
आजकल तंबाकू और गुटखा खाना फैशन बन गया है। तनाव, अवसाद या साथियों के दबाव में युवा इन नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते हैं, जो धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाती है। एक बार लत लग जाने पर इसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। रोज़ाना गुटखा या तंबाकू चबाने से मुंह में धीरे-धीरे छोटे-छोटे छाले हो जाते हैं। इसके अलावा, इससे दांतों में सड़न, मसूड़ों की बीमारी और अंततः कैंसर भी हो सकता है।
इसका उपचार क्या है?
कैंसर का इलाज आमतौर पर बहुत मुश्किल और महंगा होता है। बचने की संभावना भी बहुत कम होती है, क्योंकि ज़्यादातर मामलों में बीमारी का पता तब चलता है जब वह अपनी आखिरी स्टेज में होती है। डॉक्टरों के मुताबिक, अगर इस आदत को जल्द से जल्द छोड़ दिया जाए, तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। इसके लिए जागरूकता बढ़ाना बेहद ज़रूरी है। सरकारें और कई गैर-सरकारी संगठन भी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए काम कर रहे हैं।