
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : लोजपा की स्थापना 28 नवंबर 2000 को रामविलास पासवान ने की थी। इससे पहले, वर्ष 1983 में उन्होंने दलित सेना की नींव रखी थी। उनका मूल मंत्र था – “मैं उस घर में दिया जलाने आया हूं, जहां सदियों से अंधेरा है।” यही संकल्प उन्होंने पूरे जीवन निभाया।
रामविलास पासवान का निधन 2020 में हो गया। इसके बाद, 2021 में लोजपा दो हिस्सों में बंट गई। उस समय पार्टी के छह में से पांच सांसद उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस के साथ रहे। इनमें खगड़िया के तत्कालीन सांसद चौधरी महबूब अली कैसर भी शामिल थे। वहीं, सांसद चिराग पासवान अकेले रहे।
पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच विरासत की जंग
पार्टी बंटने के बाद लोजपा (रामविलास) और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) का गठन हुआ। लोजपा (रा) के अध्यक्ष बने चिराग पासवान, जबकि रालोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने पशुपति कुमार पारस। तब से चाचा-भतीजे के बीच रामविलास पासवान की विरासत को लेकर टकराव जारी है, जिसमें कई बार चिराग पासवान ने अपनी ताकत दिखायी।
बीते 8 अक्टूबर को रामविलास पासवान की पुण्यतिथि थी। इस मौके पर चिराग पासवान अपने परिवार और पार्टी के सांसदों के साथ उनके पैतृक गांव शहर बन्नी पहुंचे और पुण्यतिथि समारोह में हिस्सा लिया।
बड़ी मां राजकुमारी देवी से मुलाकात
चिराग पासवान ने रामविलास पासवान की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और अपनी बड़ी मां राजकुमारी देवी से मुलाकात की। उन्होंने इस मौके पर अपने पिता के सपनों को पूरा करने का संकल्प भी जताया।
लेकिन, 8 अक्टूबर को न तो पशुपति कुमार पारस आए और न ही उनकी पार्टी का कोई प्रतिनिधि। बताया जा रहा है कि पारस अपने पुत्र यशराज पासवान को अलौली विधानसभा से चुनावी मैदान में उतारना चाहते हैं। यही कारण माना जा रहा है कि वे शहर बन्नी नहीं पहुंचे।
रालोजपा की ओर से भी श्रद्धांजलि
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल ने कहा कि श्रद्धेय रामविलास पासवान की पुण्यतिथि पटना स्थित पार्टी कार्यालय में मनाई गई। इसमें रालोजपा के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस, पूर्व सांसद सूरजभान सिंह और कई नेता-कार्यकर्ता मौजूद रहे।
श्रवण अग्रवाल ने कहा, “शहर बन्नी से पारस जी का अटूट रिश्ता है। चिराग पासवान पार्टी टूटने के बाद वहां आने लगे। उससे पहले कितनी बार वहां गए?”
इसी बीच, लोजपा (रा) के प्रदेश सचिव डॉ. पवन जायसवाल ने कहा कि रामविलास पासवान शोषितों और वंचितों की आवाज थे। उनकी विरासत को चिराग पासवान आगे बढ़ा रहे हैं।