धर्म डेस्क। सनातन मतावलंबी काफी दिनों से जन्माष्टमी पर्व की प्रतीक्षा कर रहे थे। यह प्रतीक्षा अब खत्म होने को है। कल अर्थात सोमवार को घर-घर में जन्मेंगे नंदलाला। अगले दिन 27 अगस्त दिन मंगलवार को को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। इस बीच लोगों ने कान्हा जी के जन्मोत्सव की तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। झांकियां सजने लगी हैं। जिन लोगों को व्रत रखना है वे भी प्रसाद और फलाहार के इंतजाम में लगे हैं। तो आइये जानते हैं कि जन्माष्टमी का व्रत कैसे रखें ...
वैष्णव मत में पूजा पाठ के नियम सख्त हैं। नियम के साथ संयम पर विशेष ध्यान दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि से ही हो जाती है, इसलिए सप्तमी तिथि से ही भक्तों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए। अगले दिन जन्माष्टमी पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। जन्माष्टमी का व्रत फलाहार और जलाहार दोनों तरह का रखा जाता है। हालांकि सूर्यास्त से लेकर अर्द्ध रात्रि अर्थात कान्हा के जन्म की बेला तक व्रतियों को निराहार रहना श्रेयकर माना गया है।
जन्माष्टमी पर व्रतियों को ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। व्रत के दौरान अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। रात को 12 बजे कान्हा का जन्म करवाने के बाद ही व्रत खोलना चाहिए। जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के मंदिर में जाकर दर्शन करना विशेष पुण्यदाई माना जाता है। कान्हा को जिन चीजों का भोग लगाएं उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करके व्रत खोलना चाहिए। व्रतियों को दिन में कदापि नहीं सोना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन भूलकर भी कटु बचन या अमर्यादित शब्द नहीं बोलना चाहिए।
लोक मान्यता के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण अपने भक्तों पर कृपा करते रहते हैं। कान्हा अपने भक्तों को हमेशा प्रसन्न रखते हैं। कान्हा को बांसुरी प्रिय थी वह जब बांसुरी बजाते थे तो जड़ और चेतन सब मुग्ध हो जाया करते थे। क्या सम्मोहन है बांसुरी के स्वर में। इसलिए जन्माष्टमी के दिन बांसुरी कान्हा को अवश्य चढ़ाएं और बजाएं भी। ऐसा करने से कान्हा चुपके से आपके घर में आ जाएंगे।