
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : लोकसभा चुनाव भले ही निपट गए हों और नतीजे सामने आ गए हों, लेकिन बिहार में एक नया बवाल खड़ा हो गया है। मामला जुड़ा है मतदाता सूचियों से और इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानश कुमार को भी सफाई देनी पड़ी है।
बिहार की आरा लोकसभा सीट पर विपक्षी दलों, खासकर RJD और कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका आरोप है कि बूथ कैप्चरिंग और धांधली के ज़रिए चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित किया गया है। लेकिन सबसे चौंकाने वाला आरोप है वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का।
विपक्ष का दावा है कि सैकड़ों ऐसे मतदाता, जो बिल्कुल ज़िंदा हैं और वोट डालने पहुंचे, उन्हें लिस्ट में 'मृत' या 'शिफ्टेड' (यानी कहीं और स्थानांतरित) बताकर वोट देने से रोक दिया गया। सोचिए, एक व्यक्ति अपना वोट डालने जा रहा है और उसे अचानक पता चलता है कि चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में वह "मर चुका है" या कहीं और चला गया है! यह तो सीधे-सीधे उनके मताधिकार का हनन है।
और तो और, विपक्षी नेताओं का यह भी कहना है कि दूसरी तरफ, ऐसे कई नाम वोटर लिस्ट में थे, जिनके वोटर असल में इस दुनिया में हैं ही नहीं! यानी, 'जिंदा' वोटरों को बाहर कर दिया गया और 'मुर्दा' वोटरों के नाम लिस्ट में बने रहे।
इस पूरे बवाल पर जब मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानश कुमार से सवाल पूछा गया, तो उनका जवाब भी बड़ा तीखा था। उन्होंने पलटकर पूछा, "क्या चुनाव आयोग को मृत मतदाताओं को मतदाता सूची में रहने की अनुमति देनी चाहिए?" CEC ने साफ किया कि चुनाव आयोग का काम मतदाता सूचियों को अपडेट रखना है, और इसमें मृत व्यक्तियों के नाम हटाना और पते बदलने वालों के नाम संशोधित करना शामिल है। यह प्रक्रिया मृत्यु प्रमाण पत्र या घर बदलने की जानकारी के आधार पर होती है।
हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया में कहीं न कहीं गड़बड़ी हुई है, जिसके चलते कई असल मतदाता अपने मताधिकार से वंचित रह गए। उनका कहना है कि इस 'सफाई' अभियान का खामियाजा उन जिंदा लोगों को भुगतना पड़ा, जिन्हें गलत तरीके से मृत घोषित कर दिया गया।
यह मामला दिखाता है कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और सही जानकारी का होना कितना ज़रूरी है, ताकि किसी भी नागरिक को अपने सबसे बड़े अधिकार - वोट देने से वंचित न होना पड़े। अब देखना यह है कि चुनाव आयोग इस मामले में आगे क्या कदम उठाता है।