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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : महादेव को समर्पित श्रावण मास 25 जुलाई, शुक्रवार से शुरू हो रहा है। इस माह में महादेव की साधना और आराधना से अपेक्षित फल प्राप्त होते हैं। यदि विधि-विधान के साथ महादेव को एक लोटा जल भी अर्पित किया जाए तो मन की मुरादें शीघ्र पूरी होती हैं।

जो भक्त सच्चे मन से भगवान शिव का जल से अभिषेक करता है। भगवान उसके सभी दुखों को दूर करते हैं। साथ ही उसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। शिवलिंग का जलाभिषेक करते समय दिशा का ध्यान रखना आवश्यक है। मान्यता है कि पूजा के दौरान शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। लेकिन जल चढ़ाते समय दिशा का ध्यान रखना भी आवश्यक है। तभी पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

इस दिशा की ओर मुंह मत करो।

शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग पर जल दक्षिण दिशा में खड़े होकर चढ़ाना चाहिए। उत्तर, पूर्व या पश्चिम दिशा में कभी भी मुख नहीं करना चाहिए। यह शुभ नहीं माना जाता है। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार, शिवजी की पीठ, कंधे आदि इन्हीं दिशाओं में होते हैं।

दक्षिण दिशा में खड़े होकर इस प्रकार जल चढ़ाएँ कि जल उत्तर दिशा में शिवलिंग पर गिरे। इससे महादेव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि भगवान शिव पर जल की तेज़ धारा नहीं बल्कि धीरे-धीरे चढ़ाना चाहिए।

परिक्रमा के दौरान इन बातों का रखें ध्यान

शास्त्रों में मान्यता है कि शिवलिंग पर चढ़ाए गए जल को लांघना नहीं चाहिए। इसीलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद कभी भी पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। जलाभिषेक करते समय स्टील के बर्तन की बजाय तांबे या पीतल के बर्तन का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा माना जाता है।

तांबे के बर्तन से दूध न चढ़ाएं।

अगर आप शिवलिंग पर दूध चढ़ा रहे हैं, तो तांबे के बर्तन का इस्तेमाल न करें। साथ ही, ध्यान रखें कि पूजा के बाद धूप या अगरबत्ती शिवलिंग के ऊपर नहीं, बल्कि नीचे रखें।