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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के साथ ही इस बार की चारधाम यात्रा का विधिवत समापन हो गया। यात्रा मार्गों पर भी अब चहल-पहल कम हो गई है। कपाट बंद होने के दौरान श्रद्धालुओं के चेहरे पर नारायण से बिछड़ने का दर्द साफ झलक रहा था। इस भावुक माहौल में स्थानीय कारोबारी और पंडा पुजारी भी भावनाओं को रोक नहीं पाए।

इस साल बदरीनाथ यात्रा के दौरान देश के कई हिस्सों से नामी-गरामी लोग भी दर्शन करने पहुंचे। इनमें मुकेश अंबानी, फिल्म अभिनेता रजनीकांत, उत्तराखंड के राज्यपाल सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट गुरमीत सिंह, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता शामिल हैं। कपाट बंद होने का समय देश और दुनिया के श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इसी दिन अयोध्या में राममंदिर में ध्वज भी फहराया गया।

नोर्थ वेस्ट दिल्ली के अमित सेठी ने कहा कि बदरीनाथ धाम में नारायण के दर्शन की अभिलाषा हमेशा बनी रहती है। वह बार-बार इस धाम आने की इच्छा रखते हैं। वहीं मुलुंड वेस्ट, मुंबई के हार्दिक हरीश जोशी ने कहा कि बदरीनाथ धाम वास्तव में साक्षात् बैकुंठधाम है। यहां नारायण के दर्शन मात्र से व्यक्ति की सारी अभिलाषाएं पूरी हो जाती हैं। कपाट बंद होने के क्षण भक्त और भगवान के बीच भावनात्मक बिछड़न का समय होते हैं। कोलकाता के बिजन कुमार चौधरी भी इस समय को याद कर भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि भक्त और भगवान के बीच दिल का रिश्ता होता है।

20 साधु-संतों ने मांगी शीतकालीन तपस्या की अनुमति

बदरीनाथ धाम में शीतकाल के दौरान देव पूजा का प्रावधान है। मान्यता है कि इस समय देवता नारायण स्वयं पूजा करते हैं और देवर्षि नारद मुख्य पुजारी की भूमिका निभाते हैं। कम लोग ही जानते हैं कि कपाट बंद होने के बाद भी साधु-संत गुफाओं और आश्रमों में रहकर नारायण की तपस्या करते हैं। इस बार भी 20 साधु-संतों ने तपस्या के लिए अनुमति मांगी है।

साधु-संतों का पुलिस सत्यापन और तहसील प्रशासन से अनुमोदन होने के बाद उन्हें धाम में रहने की अनुमति मिलती है। शीतकाल में धाम की सुरक्षा के लिए सुरक्षा कर्मी तैनात रहते हैं। बर्फबारी के बाद धाम की आवाजाही पूरी तरह बाधित हो जाती है, इसलिए साधु-संतों के लिए राशन और जरूरी दवाइयां पहले से उपलब्ध कराई जाती हैं।

वर्षों से शीतकाल में धाम में रह रहे अमृतानंद बाबा बर्फानी बताते हैं कि शीतकाल में तपस्या का अनुभव ही कुछ अलग है। जब कड़ाके की ठंड में यहां तक कि पंछी भी धाम से पलायन कर जाते हैं, तब साधु-संत एकांत में भगवान नारायण का नाम जपने का आनंद लेते हैं और इसे अपने लिए धन्य अनुभव मानते हैं।