धर्म डेस्क। शारदीय नवरात्रि पर्व चल रहा है। ये समय डांडिया और गरबा नृत्य का भी है। देवी के नौ स्वरूपों के दर्शन और पूजन के साथ ही डांडिया और गरबा भी खेला जाता है। महाराष्ट्र और गुजरात में होने वाले इस लोक नृत्य का मां दुर्गा से सीधा संबंध है। माना जाता है कि गरबा और डांडिया उत्सव की उत्पत्ति गुजरात से हुई थी, लेकिन आज इसका स्वरूप बहुत ही विस्तृत हो चूका है। अब नवरात्रि में गरबा नृत्य का आयोजन सामूहिक तौर पर पुरे देश में होता है।
सनातन मान्यताओं के अनुसार डांडिया और गरबा नृत्य केवल नवरात्रि के दौरान ही किए जाते हैं। ये नृत्य देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच नौ दिवसीय युद्ध को दर्शाने और विजय का प्रतीक माना जाता है। इस युद्ध में माता दुर्गा विजयी हुई थी। इसलिए नवरात्रि में इस नृत्य साधना से भक्त देवी को प्रसन्न करते हैं। वैसे गरबा का शाब्दिक अर्थ गर्भ दीप होता है। गरबा और डांडिया नृत्य अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। डांडिया में देवी की आकृति का विशेष ध्यान किया जाता है, जो समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
इसी तरह देवी की पूजा के बाद गरबा नृत्य होता है। देवी की प्रतिमा के सामने मिट्टी के कलश में छेद करके दीप जलाया जाता है। उसमे चांदी का सिक्का भी डालते हैं। इसी दीप की हल्की रोशनी में भक्त गरबा नृत्य करते है। यह नृत्य देवी दुर्गा और राक्षस-राजा महिषासुर के बीच युद्ध का प्रतीक यही। गरबा पोशाक में तीन भाग होते हैं। महिलाएं चोली या ब्लाउज, चन्या या लंबी स्कर्ट और चमकदार दुपट्टा पहनती हैं। पुरुष कडू के साथ पगड़ी पहनते हैं। इसमें ताल से ताल मिलाने के लिए महिलाएं और पुरुष दो या फिर चार का समूह बनाकर नृत्य करते हैं।
गरबा नृत्य में पुरुष और महिलाएं दोनों रंगीन और सजावटी बांस की छड़ियों के साथ ढोलक और तबला जैसे वाद्ययंत्रों पर नृत्य करते हैं। डांडिया में इस्तेमाल किए जाने वाले रंग-बिरंगे शेड्स देवी दुर्गा की तलवार का प्रतिनिधित्व करते हैं। माना जाता है कि डांडिया और गरबा नृत्य से जीवन की नकारात्मकता समाप्त हो जाती है और तालियों के प्रयोग से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में गुजरात में महिषासुर नाम के राक्षस का आतंक था। उससे हर कोई परेशान था। महिषासुर के आतंक से परेशान लोगों को देखकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने माता दुर्गा से मदद की गुहार लगाई। देवताओं के विनय पर देवी जगदंबा प्रकट हुईं और उन्होंने महिषासुर राक्षस का वध किया। उसके बाद से ही लोग निर्भय हो गए। इसी के बाद से हर साल शारदीय नवरात्रि के पर्व के साथ भक्त माता को प्रसन्न करने के लिए गरबा और डांडिया नृत्य करते हैं।