
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने हाल ही में पंजाब पुलिस और सीआईए स्टाफ की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब में पुलिस रिमांड लेना, न लेना, पीटना या न पीटना एक “उद्योग” जैसा बन चुका है। इस सिस्टम के माध्यम से लाखों रुपये का लेन-देन होता है, पर असली समस्या यह है कि कोई सुनने को तैयार नहीं।
पुलिस रिमांड: एक कमाई का ज़रिया?
प्रो. चावला ने स्पष्ट किया कि रिमांड मांगा जाए या न मांगा जाए – दोनों स्थितियों में रिश्वत का खेल चलता है। पुलिस की पूछताछ की शैली भी इस बात पर निर्भर करती है कि कौन कितनी “चांदी की चाबी” लेकर आया है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इस पूरे सिस्टम पर कोई नियंत्रण है?
सीआईए स्टाफ में सीमित कार्यकाल की मांग
प्रो. चावला ने सुझाव दिया कि अगर सरकार सीआईए स्टाफ पर नियंत्रण चाहती है, तो किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को इस विभाग में एक महीने से अधिक न रखा जाए। उन्होंने पहले भी लिखा था कि थानों में मुंशी को तीन महीने से अधिक एक ही स्थान पर न रखा जाए।
तबादलों से हो सकता है सुधार
उनका मानना है कि अगर पुलिस कर्मचारियों का नियमित रूप से तबादला किया जाए और ईमानदार अफसरों की नियुक्ति की जाए, तो सिस्टम में सुधार संभव है। नियुक्ति सिफारिश से नहीं, योग्यता और ईमानदारी के आधार पर होनी चाहिए।
ईमानदार प्रयासों की सराहना
प्रो. चावला ने फगवाड़ा पुलिस की प्रशंसा की, जिन्होंने सीआईए स्टाफ के एक कर्मचारी को 2.5 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा। उन्होंने इसे एक सकारात्मक कदम बताया, जो अन्य पुलिस यूनिट्स के लिए मिसाल हो सकता है।