लखनऊ। शुक्रवार की देश से एक और लाल सितारा ओझल हो गया। तेज तर्रार वामपंथी नेता, महरतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कौंसिल के सदस्य तथा अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव कॉमरेड अतुल अंजान नहीं रहे। अतुल अंजान पिछले छह महीनों से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। आज मेयो अस्पताल में सुबह 3.20 बजे अंतिम सांस ली।
अतुल अंजान ने अपने राज्ञ्रर्तिक करियर की शुरुवात छात्र राजनीति से की थी। वह लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। उनकी गिनती तेज तर्रार युवा नेताओं में होती यही। एआईएसएफ मजबूत करने के बाद उन्होंने सीपीआई की मुख्यधारा की राजनीति का रुख किया और पार्टी की सर्वोच्च बॉडी राष्ट्रीय कौंसिल तक का सफर तय किया।
फिलवक्त, अतुल अंजान किसान संगठन के महासचिव थे। किसानों आंदोलन में उनकी अहम भूमिका थी। दिल्ली के तीनों पड़ावों पर वह नियमित रूप से पाए जाते थे।। पूरे देश में उन्होंने किसान आंदोलन को धार देने का काम किया। राजधानी के हजरतगंज में वह अक्सर पैदल घुमते नजर आते थे।
अतुल अंजान ने घोसी सीट से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा। हालांकि उन्हें कभी सफलता नहीं मिली, उनके हस्तक्षेप से पूरा चुनाव दिलचस्प हो जाता था। वह देश के राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर गंभीर विमर्श करते थे। कामरेड अतुल अंजान यूपी पुलिस-पीएसी विद्रोह के नेताओं में से एक थे। अंजान ने अपने राजनीतिक सफर के दौरान चार साल नौ महीने जेल में बिताए। उनके माता और पिता दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे।
कामरेड अनजान का अंतिम संस्कार चार मई को लखनऊ के भैंसाकुंड श्मशान घाट पर किया जाएगा। उससे पहले उनके शव को हलवसिया, हजरतगंज स्थित उनके घर और कैसरबाग स्थित पार्टी कार्यालय में लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।