विरासत साधना कार्यक्रम में देश-विदेश कलाकारों समेत देहरादून के स्कूली छात्र-छात्रों ने शास्त्रीय गीत एवं संगीत की दी शानदार प्रस्तुतियां

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देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2023 के चौथे दिन के कार्यक्रम की शुरूआत विरासत साधना के साथ हुआ। विरासत साधना कार्यक्रम में देहरादून के छात्रों द्वारा शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत किए गए। गायन श्रेणी में 19 स्कूलों के छात्रों ने भाग लिया, जिसमें सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल के अनिरुद्ध नौटियाल और मयंक सुंदरवाल शामिल थे, उन्होंने मधुबन में राधिका नाचे प्रस्तुत किया। हिल फाउंडेशन स्कूल की ऋतकृति नेगी और शुभम ध्यानी ने कल्याण थाट का भारतीय शास्त्रीय राग, राग यमन प्रस्तुत किया, फीलफोट पब्लिक स्कूल देहरादून की अदिति वर्मा और योगेश खेतवाल ने राग यमन प्रस्तुत किया, दून इंटरनेशनल स्कूल की ओजस्वी पैन्यूली और विबुषित ने राग दुर्योधराक्ष प्रस्तुत किया। द टॉम्सब्रिज स्कूल के कृत्यंजय मोहन दास, कुलदीप पंथ और तारश सेठी ने राग अहीर भैरव प्रस्तुत किया। 

एसजीआरआर यूनिवर्सिटी के प्रद्युम्न नौटियाल और सचिन मैथली ने राग राष्ट्ररेयाग प्रस्तुत किया। ग्ली म्यूजिक एकेडमी की प्रगति राणा और स्वरा आहूजा ने बृंदावाणी सारंग प्रस्तुत किया।  एसजीआरआर पब्लिक स्कूल सहस्त्रधारा रोड की अर्चना और राजेश कलोनी ने भैरवी राग प्रस्तुत किया। सरस्वती संगीत मंदिर राग भैरव से वंश थापा, परितोष शर्मा और स्पर्श सेठी ने अपनी प्रस्तुति दी।  होपवे पब्लिक स्कूल की लतिका, अनिल नौटियाल और नवीन उनियाल ने ज्योति कलश चालके प्रस्तुत किये।  सेंट ज्यूड्स स्कूल की अनुश्री पोखरियाल, योगेश खेतवाल और सौरव आहूजा ने राग बिहाग प्रस्तुत किया। हिल्टन स्कूल के आराध्या रावत, योगेश खेतवाल और सौरव आहूजा ने राग भोपाली प्रस्तुत किया। शेमरॉक नकरौंदा के अधिप्रिय नौटियाल, योगेश खेतवाल और सौरव आहूजा ने राग मालकोश में बंदिश और तराना प्रस्तुत किया।  

बरगद के पेड़ से दृष्टि कनौजिया योगेश खेतवाल और सौरव आहूजा ने राग मेघ प्रस्तुत किया।  तरूण संगीत एवं विचार मंच के देवांश अवस्थी, योगेश खेतवाल और सौरव आहूजा ने राग भोपाली प्रस्तुत किया। यूनिवर्सल एकेडमी से वर्तिका सिंह, योगेश खेतवाल और सौरव आहूजा ने राग यमन से बड़ा ख्याल प्रस्तुत किया। विरासत साधना की आयोजक श्रीमती साधना ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए।

आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभांरंभ डॉ. बी. वी. आर. सी. पुरुषोत्तम, आईएएस, पशुपालन, मत्स्य पालन और डेयरी, उत्तराखंड सरकार ने दीप  प्रज्वलन के साथ किया एवं उनके साथ रीच विरासत के महासचिव आर.के.सिंह एवं अन्य सदस्य भी मैजूद रहें।

सांस्कृतिक कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति मे रोनू मजूमदार और यू राजेश द्वारा बांसुरी और मैंडोलिन पर जुगलबंदी प्रस्तुत किया गया। जिसमें उन्होंने कर्नाटक संगीत में राग मोहनम के साथ प्रदर्शन शुरू किया जो राग भूपाली के समान है, उनके प्रस्तुति में श्रीनिवासन मृदंगम पर संगत कर रहे थे। उनकी अगली प्रस्तुति रागमाला रही।

रोनू मजूमदार ने अपनी शिक्षा अपने पिता से शुरू की, जिन्होंने स्वर्गीय पंडित पन्नालाल घोष से शिक्षा ली थी ,जो बांसुरी वादन के अग्रणी थे और उन्होंने ही इसे शास्त्रीय संगीत में पेश किया था। रोनू के पिता ही उनके पहले गुरु थे और फिर वह  बाद में सर्वकालिक महान बांसुरीवादक स्वर्गीय पंडित विजय राघव राव जी के शिष्य बने। रोनू को स्वर संगीत का प्रशिक्षण पंडित लक्ष्मण प्रसाद जयपुरवाले से मिला । उनके बहुत ही प्रसिद्ध गीत “अथः स्वागतम, शुभ स्वागतम“ की रिकॉर्डिंग के समय उनकी मुलाकात भारत रत्न पंडित रविशंकर से हुई। श्री रविशंकर रोनू जी की संगीत क्षमताओं से प्रसन्न हुए और फिर वह इसका हिस्सा भी बन गए।

रोनू को उनका सबसे पहला पुरस्कार ऑल इंडिया रेडियो में मिला उसके बाद उन्हें अनेको पुरस्कार मिले जैसे की आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2014 और नवभारत टाइम्स द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, पंडित जसराज गौरव पुरस्कार, राष्ट्रीय कुमार गंधर्व पुरस्कार 2006 और वर्ष 2008 में पंडित जसराज गौरव पुरस्कार। उन्हें बेला फ्लेक और अन्य के साथ एल्बम ’टेबुला रस’ के लिए ग्रैमी अवार्ड के लिए भी उन्हें चुना गया उन्होंने अपना बॉलीवुड का सफर साल 1981 में आर.डी. बर्मन की मदद से शुरू किया था ।उन्होंने लता मंगेशकर के साथ भी कई बहुत यादगार गानों में परफॉर्म भी किया है। जो की आज भी लोग सुनना बहुत पसंद करते है।  वह फिल्म “माचिस“ के लिए विशाल भारद्वाज के साथ भी जुड़े रहे हैं।  

   

यू राजेश कर्नाटक संगीत के मैंडोलिन वादक है, कम उम्र से ही उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पिता और भाई यू.श्रीनिवासन से प्राप्त की।  उन्होंने 6 साल की उम्र में मैंडोलिन पर कर्नाटक शास्त्रीय संगीत बजाना शुरू किया और श्री चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती. की उपस्थिति में कांची कामकोटि पीठम में अपना पहली संगीत कार्यक्रम की प्रस्तुति दी। उन्होंने और उनके भाई ने एक साथ संगीत कार्यक्रमों में प्रदर्शन किया है, और एक साथ संगीत एल्बम भी जारी की हैं। वह संगीत विद्यालय, श्रीनिवास इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड म्यूजिक ैप्व्ॅड हैं, जो विद्यार्थियों को निःशुल्क संगीत शिक्षण प्रदान करते है।

जॉन मैकलॉघलिन के एल्बम फ़्लोटिंग पॉइंट के साथ उनके काम को 2009 में ग्रैमी नामांकन प्राप्त हुआ और उन्होंने लिंकन सेंटर, न्यूयॉर्क शहर में भी प्रदर्शन किया है। उन्होंने लंदन, मेलबर्न कॉन्सर्ट हॉल, सिटी डे ला म्यूसिक, पेरिस, ग्रीस, कनाडा, मध्य-पूर्व, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में बीबीसी लाइव के लिए संगीत कार्यक्रम किए हैं। उन्होंने जोहान्सबर्ग फिलहारमोनिक ऑर्केस्ट्रा के साथ भी प्रदर्शन किया है।  अप्रैल 2007 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। उन्होंने सोलो एल्बम के साथ- साथ अन्य कलाकारों के सहयोग से विभिन्न एल्बम जारी किए हैं। म्यूजिकल एल्बम समजनिथा में वह खुद, यू. श्रीनिवास, जाकिर हुसैन, शिवमणि और जॉर्ज ब्रूक के साथ शामिल थे।

सांस्कृतिक कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति में गायिका सुधा रगुनाथन ने सार्वभौमिक मां को समर्पित राग खमाज में ’माथे एक वर्णम’ के साथ अपना प्रस्तुति शुरू किया उसके बाद में भगवान गणेश के आह्वान के साथ संगीतकार मुथुस्वामी दीक्षितार द्वारा ’काशी रामक्रिया’ को संबोधित ’राग पंटुवराली’ की प्रस्तुति दी उसके बाद उन्होंने कुछ भक्तिमय लोक रचना तेलुगु में मुथुस्वामी दीक्षित कृति, महा गणपतिम मनसा स्मरामी राग नट्टई, मुथुस्वामी दीक्षितर पुरिया धनश्री द्वारा पंटुवराली मुख्य राग के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। उनके साथ कर्नाटक संगीत के समर्पित कलाकार, वायलिन वादक आर. श्रीधर रहे, उन्हें सबसे प्रतिष्ठित बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार, ए ग्रेड  रेडियो कलाकार और संस्कृति मंत्रालय में जूनियर फेलो से सम्मानित किया गया था मृदंगम पर स्कंद सुब्रमण्यम उनके संगत मे रहे।

भारत में कर्नाटक संगीत के सबसे चमकीले सितारों में से एक प्रमुख गायिका सुधा रगुनाथन भी हैं। जिनकी आवाज़ दुनिया भर के श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है। उन्हे कई प्रतिष्ठित पुरुस्कार भी मिले जिन्मे से एक पद्मभूषण और संगीता कलानिधि भी शामिल हैं।

सुधा रगुनाथन की गायन तकनीकों और जटिल शैलियों पर महारत हासिल हैं , ’कृति’ ’राग’ और ’कल्पना स्वर’ की उनकी प्रामाणिक प्रस्तुति, सप्तक पर उनकी पकड़ उन्हें सर्वोच्च कलाकार बनाती है। उन्होंने दुनिया भर में कई संगीत समारोहों में अपना प्रदर्शन बख़ूबी निभाया और लाखों लोगो को अपनी आवाज़ से प्रभावित किया इसी के साथ साथ उन्होंने प्रमुख रिकॉर्डिंग कंपनियों के साथ 200 से अधिक एल्बम भी जारी किए। वह प्रसार भारती, ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन मे एक शीर्ष रैंकिंग कलाकार हैं। सुधा को स्वतंत्र भारतीय गणतंत्र के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 27 जनवरी 2000 को संसद के सेंट्रल हॉल, नई दिल्ली में ’वंदे मातरम’ प्रस्तुति करने के लिये अद्वितीय सम्मान भी प्राप्त हुआ है!

सुधा ने अपने प्रशिक्षित की शुरुआत अपनी माँ श्रीमती चूड़ामणि से की जिन्होंने शुरू में उन्हें प्रशिक्षित किया था। 1977 में, सुधा को केंद्र सरकार से छात्रवृत्ति मिली, जिससे उन्हें पद्मभूषण संगीत कलानिधि डॉ. एम.एल. के अधीन अध्ययन करने का अवसर भी  मिला। वह एक समर्पित कलाकार हैं, जो हमेशा उत्कृष्टता के लिए प्रयासरत रहती हैं। संगीत में अपनी सफलता के अलावा, सुधाजी ने 1999 में “समुदाय फाउंडेशन“ की शुरुआत की, जो एक धर्मार्थ संगठन है जिसने कई सामाजिक और शैक्षिक कारणों और उपशामक देखभाल में योगदान दिया है। सुधा जी ने कर्नाटक संगीत को निगम स्कूलों, दूरदराज के गांवों और जेलों में भी पहुंचाया है।

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