(नई जिंदगी नया सवेरा)
28 नवंबर की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। एक ऐसा जटिल रेस्क्यू ऑपरेशन जो असंभव दिख रहा था। लेकिन भारतीयों ने एक बार फिर विश्व को दिखा दिया कि हमारी काम करने का देसी तकनीक आज के हाईटेक मशीनी युग में भारी है। उत्तरकाशी की सिल्कयारा सुरंग में 17 दिन से जिंदगी और मौत से जूझ रहे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए विश्व की हाईटेक अमेरिकन ऑगर' मशीन भी सफल नहीं हो सकी तो भारत के कारीगरों ने उठाई छेनी, हथोड़ा और खुदाई करके 41 जिंदगियों को मौत से छीन लाए । 25 नवंबर को मजदूरों को टनल में फंसे हुए 14 दिन हो चुके थे। तभी अमेरिकी ऑगर मशीन का ब्लेड टूट गया।
मलबे में दबे सरिए और लोहे में फंसकर ऑगर के पुर्जे टूट गए। दो दिन तक काम बंद रहा। भारी ड्रिलिंग मशीन के खराब हो जाने के बाद मामला काफी गंभीर हो गया था । जब मजदूरों को निकालने की कोई तकनीक काम नहीं आई तो मैनुअली मलबा निकालने का फैसला हुआ। उसके बाद रैट माइनर्स को बुलाया गया। 6 रैट माइनर्स की टीम बुलाई गई। 27 नवंबर को रैट माइनर्स पाइप के जरिए अंदर गए और हाथ से खुदाई करने लगे। सिर्फ दो दिन में 6 लोगों की टीम 41 मजदूरों तक पहुंच गई। 400 घंटे चला यह रेस्क्यू आखिरकार सफल रहा। मंगलवार रात 7:50 पर जैसे ही टनल से मजदूरों का निकलना शुरू हुआ जयकारे लगने लगे। सही मायने में यह भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी उपलब्धि है। उत्तरकाशी की सिल्कयारा टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया है।
17 दिन तक सुरंग में फंसी 41 जिंदगियों के बाहर आने की उम्मीद पूरा देश लगाए बैठा था। भारतीय सेना के साथ एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और सभी ने कड़ी मेहनत के बाद यह कामयाबी हासिल की है। इस कामयाबी का क्रेडिट उन रैट माइनर्स को भी दिया जाना चाहिए जो अपने हाथों से मलबा निकाल रहे थे। यही वे लोग थे जो सबसे पहले वहां पहुंचे जहां मजदूर इंतजार की राह तक रहे थे। इन रैट माइनर्स के चेहरों पर मुस्कुराहट उस तंग सुरंग में खुदाई करने की सारी थकान को छिपा रही थी, जहां सांस लेना भी एक चुनौती बन जाता है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने सभी मजदूरों को निकाले जाने के बाद मीडिया से बात करते हुए भी रैट माइनर्स का जिक्र किया और धन्यवाद दिया।
उन्होंने कहा, मशीनें खराब होती रहीं, लेकिन मैं हाथ से खनन करने वालों को धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं फंसे हुए श्रमिकों से भी मिला। उन्होंने कहा कि उन्हें सुरंग के अंदर कोई समस्या नहीं हुई। उत्तरकाशी की सिल्कयारा सुरंग में फंसे मजदूर मंगलवार की रात जैसे ही बाहर निकले देशवासियों ने राहत की सांस ली। सुरंग से निकले कुछ श्रमिकों के चेहरों पर मुस्कान थी तो कुछ के चेहरे 17 दिन की परेशानियों के बाद थके हुए दिख रहे थे। सुरंग के बाहर मौजूद लोगों ने जयकारा लगाया और लोगों ने उन एंबुलेंस का स्वागत किया जो श्रमिकों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ले गईं, जबकि स्थानीय लोगों ने मिठाई बांटी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भी पार्टी में इस सफल रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद कद बढ़ गया है। रैट माइनर्स के एक लीडर ने कहा कि यह बहुत मेहनत का नतीजा है, उन्होंने कहा, हम आश्वस्त थे कि हमें फंसे हुए मजदूरों को बचाना होगा। यह हमारे लिए जीवन में एक बार मिलने वाला मौका था। उन्हें बाहर निकालने के लिए हमने 24 घंटे लगातार काम किया।
मजदूरों के बाहर निकलने पर पीएम मोदी ने इस सफल रेस्क्यू ऑपरेशन पर मजदूरों और बचाव टीमों को बधाई दी है। पीएम मोदी ने सभी मजदूरों से फोन पर बात की और उनका हाल जाना। बता दें कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 12 नवंबर को दीपावली के दिन सिल्क्यारा टनल में काम कर रहे 41 मजदूर उस समय सुरंग में फंस गए थे, जब सुबह 5.30 बजे अचानक से भूस्खलन हुआ और टनल का एक हिस्सा ढह गया। इसके बाद मजदूरों को निकालने के लिए विदेशों से एक्सपर्ट बुलाई गई बड़ी-बड़ी मशीनों से भी काम किया गया और आखिर 17 दिन बाद मजदूरों को टनल से बाहर निकाल लिया गया। इसमें अधिकतर मजदूर पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, यूपी से हैं । यह जटिलतम और कठिनाइयों से भरा रेस्क्यू ऑपरेशन लंबे समय तक याद रखा जाएगा। इसके साथ उत्तराखंड ने की भी पूरे विश्व में धमक बढ़ गई है।
राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, केंद्रीय मंत्री वीके सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इस देश की ऑपरेशन की मॉनिटरिंग कर रहे थे। वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को कहा कि वह उत्तराखंड में सिल्कयारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाले जाने पर राहत और खुशी महसूस कर रहे हैं। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री गडकरी ने 'एक्स' पर लिखा 'मैं सिल्कयारा सुरंग से 41 श्रमिकों को सकुशल निकाले जाने पर राहत और खुशी महसूस कर रहा हूं।
टनल से निकाले गए सभी मजदूरों को अस्पताल में चेकअप के लिए कराया गया भर्ती--
टनल परिसर में स्वास्थ्य परीक्षण के बाद इन सभी मजदूरों को 41 एंबुलेंस के सहारे उत्तरकाशी के चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती किया गया। स्वास्थ्य केंद्र में पहले से ही अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं स्थापित की गई थी। डॉक्टरों की टीम ने मजदूरों के अस्पताल पहुंचते ही उनका उपचार शुरू कर दिया । हालांकि सभी मजदूर स्वस्थ्य थे। लेकिन टनल के अंदर सीलन वाली जगह, अंधेरा और बाकी दुनिया से 17 दिन से कटे रहने के कारण उन्हें शारीरिक और मानसिक चेकअप की जरूरत थी। डाक्टरों का कहना है कि फिलहाल इन मजदूरों को अभी घर नहीं भेजा जायेगा। जैसे ही वो अपने को स्वस्थ्य महसूस करेंगे और उनकी मानसिक स्थिति ठीक होगी, उन्हें यहां से भेजा जायेगा। डॉक्टर ने कहा कि नियम अनुसार 24 घंटे हॉस्पिटल में रहना पड़ता है। रात को उन्होंने भरपेट भोजन करवाया।
सीएम पुष्कर सिंह धामी और जनरल वीके कुछ देर में चिन्यालीसौड़ सामुदायिक अस्पताल पहुंचेंगे। यहां पहुंचकर वो मजदूरों का हाल-चाल जानेंगे। साथ ही 41 मजदूरों को एक एक लाख रुपए की राहत राशि के चेक वितरित करेंगे। उत्तराखंड सरकार ने कल रेस्क्यू पूरा होते समय सभी श्रमिकों को 1-1 लाख रुपए देने की घोषणा की थी। इसके साथ ही उत्तराखंड सरकार ने सभी मजदूरों के परिजनों के रहने, खाने-पीने और आवागमन की व्यवस्था भी की है।
रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर विश्व के तमाम देशों की नजरें लगी हुई थी--
दुनिया के सबसे जटिल रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर विश्व के तमाम देशों की नजरें लगी हुई थी। 29 नवंबर बुधवार को भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर के अखबारों में पहले पेज पर इस सफल रेस्क्यू ऑपरेशन की खबर को प्राथमिकता दी गई है। ब्रिटेन के अखबार द गार्जियन ने लिखा, 400 घंटों तक सुरंग में फंसे होने के दौरान कई बाधाएं आईं, मजदूरों को निकालने के लिए कई तरह के 'झूठे' वादे किए गए लेकिन मंगलवार की रात को मजदूर बाहर आए। अखबार ने लिखा, जिस सुरंग में मजदूर फंसे थे वह पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। द गार्जियन ने इस मामले की जांच कर रहे विशेषज्ञों के पैनल का हवाला देते हुए लिखा, सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग में कोई आपातकालीन निकास नहीं था। वहीं भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को देश भर में बनाई जा रही 29 अन्य सुरंगों का ऑडिट करने का निर्देश दिया गया है।
अमेरिकी अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट ने 'भारत में बचावकर्मी हफ्तों से टनल में फंसे 41 लोगों तक पहुंचे' शीर्षक से खबर छापी है। अखबार ने लिखा, लगभग 300 फीट नीचे एक ढही सुरंग में फंसे 41 मजदूरों तक पहुंचने में लगभग दो हफ्ते लग गए, अंत में उन्हें हाथों और फावड़ों के सहारे सुरंग खोदकर निकाला गया। अखबार लिखता है, ये सुरंग परियोजना चीन के साथ भारत की विवादास्पद और विवादित सीमा के नजदीक एक प्रमुख बुनियादी ढांचे का हिस्सा है। यह उत्तरी भारत में हिंदू धार्मिक स्थलों को जोड़ने वाली सड़कों, पुलों और सुरंगों के एक नए नेटवर्क का भी हिस्सा है, जिसे अगले साल के चुनाव से पहले वोट बैंक को साधने के लिए तैयार किया गया है।
द वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा, 2021 में एक समिति ने इस परियोजना के बारे में पर्यावरण से जुड़ी समस्यओं को लेकर देश के शीर्ष न्यायालय का ध्यान खींचा था, लेकिन तब सरकार ने कहा था कि जंग के हालात में इस रास्ते के इस्तेमाल से सीमा पर हथियारों को जल्द भेजा जा सकेगा। अखबार ने लिखा, तमाम सुरक्षा चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि रक्षा के लिहाज से सड़कों का चौड़ीकरण महत्वपूर्ण है। बांग्लादेश की चर्चित अखबार द डेली स्टार ने लिखा, 17 दिनों तक सुरंग में फंसे होने के बाद आखिरकार मजदूर बाहर निकल आए। अखबार ने लिखा, जो मजदूर सुरंग में फंसे थे वे भारत के कुछ राज्यों से आते हैं। बचाव के लिए सुरंग को खोदे जाने के करीब 6 घंटे बाद सभी मजदूर बाहर आ पाए।
मध्य पूर्व और कतर सरकार की ओर से वित्तपोषित न्यूज चैनल अल-जजीरा ने भारतीय मजदूरों की निकासी को प्रमुखता से जगह दी है। अल-जजीरा ने लिखा, जिस इलाके में सुरंग बनी है वहां भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ का खतरा बना रहता है। अंतरराष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स ने कहा कि मैंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा, मैंने वहां मौजूद 41 लोगों के लिए ही भगवान से मन्नत मांगी थी। मैंने इस ऑपरेशन में लगे लोगों के लिए प्रार्थना की थी, हम किसी को भी चोटिल नहीं होने दे सकते थे।
बता दें कि 12 नवंबर दीपावली के दिन अचानक सुरंग में मलबा गिरने से 41 मजदूर अंदर ही फंस गए। उन्होंने अपने जीवन के नौ दिन का गुजारा केवल ड्राई फ्रूट्स और चने खाकर अंदर बह रहे स्रोत के पानी से किया। उनके पास सोने को बिस्तर था न शौचालय की सुविधा। ऑपरेशन सिलक्यारा में सभी मजदूरों की जिंदादिली एक नजीर बन गई। 17 दिनों बाद अंधेरे से निकले श्रमिकों में खुशी की लहर है। परिवार से मिलकर श्रमिकों ने राहत की सांस ली है।