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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : बिहार में 2025 में होने वाले चुनावों से पहले, मतदाता सूची से लगभग 41 लाख नामों को हटाने के चुनाव आयोग के फैसले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। ये नाम मृत व्यक्तियों, पलायन करने वाले मतदाताओं और झूठे या फर्जी नामों के आधार पर हटाए जा रहे हैं। हालांकि, जहां विपक्ष इस कार्रवाई पर सवाल उठा रहा है, वहीं राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी का कहना है कि अगर ये वाकई अमान्य नाम हैं, तो इसका चुनाव परिणामों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। एक हालिया सर्वे के अनुसार, 35% लोग इस फैसले को सही मानते हैं, जबकि 27% लोगों का मानना है कि फिलहाल इसकी जरूरत नहीं थी और 15-17% लोग इसे राजनीति से प्रेरित मानते हैं, जिससे पता चलता है कि जनता इस मुद्दे पर बंटी हुई है।

चुनाव आयोग की कार्रवाई और विपक्ष की चिंताएँ

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि हटाए जा रहे लगभग 17 लाख नाम मृत मतदाताओं के हैं, 12-13 लाख प्रवासी मतदाताओं के हैं, और शेष 10-12 लाख नाम नकली या फर्जी हो सकते हैं। हालाँकि, विपक्ष इस मुद्दे पर पारदर्शिता की कमी को लेकर चिंतित है। उनकी मुख्य मांग यह है कि आयोग स्पष्ट करे कि हटाए गए मतदाताओं में से कितने वास्तव में अवैध प्रवासी हैं या कितने ने नकली मतदाता बनकर पंजीकरण कराया था। इस स्पष्टीकरण के अभाव ने इस मुद्दे को और विवादास्पद बना दिया है।

एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, इस फ़ैसले पर जनता की राय बँटी हुई है: 35% लोग मानते हैं कि अवैध मतदाताओं को हटाना एक सही फ़ैसला है। 16% लोग इसे एक सामान्य प्रक्रिया मानते हैं। 27% लोगों का मानना है कि इस समय इसकी ज़रूरत नहीं है। 15-17% लोग इसे राजनीति से प्रेरित मानते हैं। ये आँकड़े बताते हैं कि बिहार के लोग इस फ़ैसले को लेकर असमंजस में हैं और उनकी राय में साफ़ तौर पर विभाजन है।

चुनाव परिणामों पर संभावित प्रभाव

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने न्यूज़ तक को बताया कि अगर हटाए गए मतदाता वास्तव में मर चुके हैं या पलायन कर चुके हैं, तो उन्हें हटाना स्वाभाविक है और इसका चुनाव परिणामों पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ेगा। लेकिन, अगर ऐसे लोगों को हटाया जाता है जो वास्तव में जीवित हैं और स्थानीय मतदाता हैं, और जिनका नाम पहले से ही मतदाता सूची में दर्ज है, तो इससे मतदान की मंशा ज़रूर प्रभावित हो सकती है।

जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि बहिष्कृत मतदाताओं में कितने वैध मतदाता शामिल हैं, तब तक यह कहना मुश्किल है कि इस फैसले से किस राजनीतिक गठबंधन (नीतीश, तेजस्वी या भाजपा) को फायदा होगा।

राजनीतिक गठबंधन की स्थिति

ताज़ा सर्वेक्षण बता रहे हैं कि महागठबंधन (राजद+कांग्रेस) मामूली बढ़त में दिख रहा है। हालाँकि, भाजपा (एनडीए) का मुख्यमंत्री पद के लिए पसंदीदा चेहरा थोड़ा आगे है। इसका मतलब है कि बिहार में चुनाव अभी पूरी तरह खुला है। मतदान का इरादा स्थिर नहीं है और आखिरी समय में बदलाव की प्रबल संभावना है। इसलिए, मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया का दीर्घकालिक प्रभाव चुनाव से पहले और स्पष्ट होगा।