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अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के पास बुधवार को उस वक्त हड़कंप मच गया, जब एक यात्री विमान के क्रैश होने की खबर फैली। खबर मिलते ही एयरपोर्ट पर सायरन गूंजने लगे, चारों तरफ धुआं फैल गया और बचाव कार्य के लिए एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और पुलिस की गाड़ियां दौड़ पड़ीं। दृश्य ऐसा था मानो कोई बहुत बड़ा हादसा हो गया हो।

चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल था, लोग घबराए हुए थे। लेकिन कुछ ही देर में इस घटना की सच्चाई सामने आई, जिसने सभी को हैरान भी किया और राहत की सांस भी दी। दरअसल, यह एक असली विमान हादसा नहीं, बल्कि एक सुनियोजित मॉक ड्रिल थी। इसका आयोजन एयरपोर्ट अथॉरिटी और विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों द्वारा मिलकर किया गया था।

क्या थी मॉक ड्रिल की कहानी?

इस मॉक ड्रिल के लिए एक काल्पनिक स्थिति बनाई गई, जिसके अनुसार एयर इंडिया का A-320 विमान, जिसमें 200 यात्री सवार थे, इंजन में खराबी के कारण एयरपोर्ट के पास क्रैश हो गया। विमान में आग लग गई और धुआं उठने लगा।

जैसे ही 'हादसे' की सूचना मिली, एयरपोर्ट पर मौजूद सभी आपातकालीन एजेंसियां हरकत में आ गईं। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), गुजरात पुलिस, फायर ब्रिगेड और मेडिकल टीमों ने तुरंत मोर्चा संभाला। बचाव दलों ने तेजी से 'घायल' यात्रियों को विमान से बाहर निकाला, उन्हें प्राथमिक उपचार दिया और एंबुलेंस के जरिए नजदीकी अस्पतालों में पहुंचाया। आग बुझाने वाली गाड़ियों ने विमान में लगी 'आग' पर काबू पाया।

क्यों जरूरी है ऐसी मॉक ड्रिल?

अधिकारियों के अनुसार, यह फुल-स्केल इमरजेंसी मॉक ड्रिल पूरी तरह सफल रही। इसका मुख्य उद्देश्य किसी भी वास्तविक आपात स्थिति में सभी एजेंसियों के बीच तालमेल और उनकी तैयारियों को परखना था। इस तरह के अभ्यास से यह पता चलता है कि किसी भी हादसे के समय बचाव कार्य कितनी तेजी और कुशलता से किया जा सकता है। नागरिक उड्डयन नियमों के अनुसार, हर दो साल में इस तरह की मॉक ड्रिल करना अनिवार्य है ताकि हवाई यात्रा सभी के लिए सुरक्षित बनी रहे।