
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुक्रवार को अलास्का में यूक्रेन संकट पर एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन किया। दोनों नेताओं ने तीन घंटे चली इस बैठक को 'बेहद उत्पादक' और 'पारस्परिक रूप से सम्मानजनक' बताया, लेकिन किसी अंतिम समाधान की घोषणा नहीं की गई। इस बैठक को यूरोपीय सुरक्षा और यूक्रेन युद्ध की दिशा तय करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
इस बैठक के दस महत्वपूर्ण बिंदु क्या थे...
प्रेस कॉन्फ्रेंस और बयान
बैठक के बाद, दोनों नेताओं ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन पत्रकारों के सवालों का जवाब नहीं दिया। ट्रंप ने कहा, "जब तक कोई पूर्ण समझौता नहीं हो जाता, तब तक कोई समझौता नहीं होगा," जबकि पुतिन ने इसे "गहन और उपयोगी" बातचीत बताया।
प्रतिनिधिमंडल की उपस्थिति
व्हाइट हाउस के अनुसार, ट्रंप के शीर्ष सलाहकार पूरी बैठक में मौजूद रहे। पहले से तय आमने-सामने की बैठक के बजाय, ट्रंप के साथ विदेश मंत्री मार्को रुबियो और विशेष दूत स्टीव विटकॉफ भी मौजूद थे। बाद में, दोपहर के भोजन पर एक बड़ी बैठक हुई, जिसमें अन्य अधिकारियों ने भी भाग लिया।
पुतिन की रूसी टीम
के साथ रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और विदेश नीति सलाहकार यूरी उशाकोव भी थे।
बैठक में आंशिक सहमति बनी:
ट्रंप ने कहा, "हमारी बैठक बहुत ही उत्पादक रही और हम कई मुद्दों पर सहमति पर पहुंच गए हैं। अब केवल कुछ मुद्दे ही बचे हैं।"
पुतिन का रुख
पुतिन ने इससे पहले एक लंबा भाषण देते हुए कहा था कि वार्ता 'रचनात्मक और पारस्परिक सम्मानपूर्ण माहौल' में हुई।
बैठक का स्थान और महत्व
यह बैठक अलास्का के सबसे बड़े सैन्य अड्डे, संयुक्त बेस एल्मेंडोर्फ-रिचर्डसन में हुई, जिसका उपयोग शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ पर नजर रखने के लिए किया जाता था।
ट्रंप का लक्ष्य:
अलास्का की यात्रा के दौरान ट्रंप ने कहा कि वह यूक्रेन की ओर से कोई समझौता नहीं करने जा रहे हैं, बल्कि उनका लक्ष्य पुतिन को बातचीत की मेज पर लाना है। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि सब ठीक हो जाएगा, और अगर नहीं, तो मैं तुरंत घर लौट जाऊँगा।"
ज़ेलेंस्की की अपील:
जब ट्रंप अलास्का की यात्रा पर थे, तब यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति को रूस से कहना चाहिए कि वह 'हमले बंद करे।' उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "युद्ध समाप्त करने का समय आ गया है, और रूस को आवश्यक कदम उठाने चाहिए। हम अमेरिका से यही उम्मीद करते हैं।"
भारत पर असर:
रूसी तेल ख़रीदने पर अमेरिकी टैरिफ़ का सामना करते हुए, भारत ऐसी स्थिति में है कि वह चीन के साथ पश्चिमी देशों के 'नकली व्यापार युद्ध' में अमेरिका द्वारा ख़ुद को इस्तेमाल नहीं होने दे सकता। कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जेफ़री डी. सैक्स ने एनडीटीवी से कहा, "अमेरिका दूसरे देशों का इस्तेमाल करता है और उनके प्रति ज़िम्मेदारी से पेश नहीं आता, इसलिए सावधान रहें। भारत को इस अमेरिकी व्यापार युद्ध में ख़ुद को मोहरा नहीं बनने देना चाहिए।"