भाजपा ने सीएम नीतीश कुमार के लिए फिर तैयार किया "मंच", बिहार में एनडीए की सरकार बनने की तैयारियां शुरू

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उत्तर भारत में कड़ाकेदार ठंड के बीच बिहार की सियासत का पारा इस वक्त गर्म है। बिहार में एक बार फिर राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। पटना से राजधानी दिल्ली तक भाजपा और जेडीयू नेताओं के बीच बैठकों का दौर जारी है। लोकसभा चुनाव से पहले "इंडिया गठबंधन" को बड़ा झटका लगने के लिए तैयार है। उसकी सबसे बड़ी वजह हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर नीतीश कुमार के लिए चौथी बार दरवाजे खोल दिए हैं। नीतीश कुमार फिर से पलटी मारकर एनडीए में शामिल हो रहे हैं। उनकी बीजेपी के साथ डील फाइनल हो गई है। नीतीश कुमार अभी लगभग डेढ़ साल पहले ही एनडीए का साथ छोड़कर महागठबंधन में शामिल हुए थे। मगर उनका फिर से महागठबंधन में मन नहीं लग रहा है, इसलिए वह पाला बदलने को तैयार हैं। वहीं लोकसभा चुनाव दहलीज पर हैं। ऐसे में नीतीश कुमार और भाजपा के बीच एक बार फिर होने जा रहा "मेल" दोनों के लिए फायदे में रहेगा। ‌चर्चाएं जोरों पर हैं कि नीतीश कुमार के समर्थन से रविवार को सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। जिसको लेकर बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में मंथन चल रहा है। नीतीश सीएम बनेंगे और बीजेपी के दो डिप्टी सीएम होंगे। इस समय विधानसभा भंग नहीं की जाएगी और चुनाव नहीं होंगे। वैसे भी बिहार में अगले साल मतदान होना है, इसलिए यह समझ में आता है कि कोई भी पार्टी जल्दबाजी में नहीं है। वहीं जेडीयू ने 28 जनवरी को विधायक दल की बैठक बुलाई है जो कि सीएम नीतीश के आवास पर होगी। शुक्रवार को आरजेडी और जेडीयू के बीच की दूरी और तल्ख होती दिखी जब राज्यपाल द्वारा गणतंत्र दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव नहीं पहुंचे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी कुर्सी पर बैठे थे और उनके बगल में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की कुर्सी लगी थी। बाकायदा नाम चस्पा था लेकिन जेडीयू के नेता और मंत्री अशोक चौधरी ने तेजस्वी के नाम की पर्ची हटाई और नीतीश के बगल में उस कुर्सी पर बैठ गए। इस कार्यक्रम से तेजस्वी की दूरी ने बता दिया कि नीतीश और लालू की खाई चौड़ी हो चुकी है। वहीं, नीतीश कुमार का जवाब भी इसको पुख्ता कर देता है। इस कार्यक्रम में जब सीएम नीतीश कुमार से पूछा गया कि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव क्यों नहीं आए तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि जो नहीं आया, इसका जवाब तो सिर्फ वही दे सकता है कि वो क्यों नहीं आया। साफ है कि बिहार में सियासत का नया समीकरण जन्म ले रहा है। अब सवाल ये है कि नए गठबंधन में बीजेपी के पुराने सहयोगियों का भविष्य क्या होगा। इसके संकेत बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने भी दिए हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति में दरवाजे हमेशा बंद नहीं रहते, आवश्यकता पड़ने पर वह खुल भी सकते हैं। बिहार में चल रहे सियासी उथल-पुथल पर बीजेपी पूरी नजर बनाए हुए है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने दिल्ली में कई बैठकें कीं। भाजपा के नीतीश कुमार का अपने खेमे में स्वागत करने के लिए तैयार होने को लेकर चर्चाओं के बीच भाजपा की बिहार इकाई के अध्यक्ष सम्राट चौधरी, सुशील मोदी और विजय कुमार सिन्हा सहित राज्य के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने राष्ट्रीय राजधानी में गृहमंत्री अमित शाह समेत पार्टी के शीर्ष नेताओं से मिले। बैठक के बाद सुशील कुमार मोदी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'राजनीति में कोई दरवाजा हमेशा के लिए बंद नहीं होता। बंद दरवाजा आवश्यकता पड़ने पर खोल भी दिए जाते हैं। हालांकि साथ में उन्होंने यह भी कहा कि अब ये दरवाजा खुलेगा या नहीं, ये तो मुझे नहीं पता। राजनीति तो संभावनाओं का खेल है। आगे क्या होगा इस पर में कुछ नहीं कह सकता। 

वहीं हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी ने शुक्रवार को कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) प्रमुख नीतीश कुमार जल्द ही भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में लौटेंगे। आने वाले दो दिनों में बिहार की राजनीतिक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। ‌ इसी के साथ राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है, कहावत एक बार फिर सही साबित होगी। बीजेपी नेताओं का कहना है कि अगर नीतीश इस बार फिर एनडीए में आते हैं तो बीजेपी इस बार उनकी शर्तें नहीं मानेगी बल्कि इस बार बीजेपी का अपरहैंड होगा। बीजेपी बहुत संभलकर चल रही है। कहा जा रहा है कि 8 से 10 कांग्रेस विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं, ताकि अगर नंबर गेम में कुछ हेरफेर हुई तो बैकअप प्लान तैयार रहे। वहीं बीजेपी सरकार गठन से पहले पहले के सहयोगी, मसलन चिराग पासवान और जीतन मांझी को भी विश्वाम में लेना चाहती है। इन तमाम मुद्दों पर देर शाम बीजेपी की ओर से अमित शाह, जेपी नड्डा समेत पार्टी के सीनियर नेताओं ने मीटिंग की। इसमें नीतीश कुमार समेत तमाम सहयोगियों को लोकसभा में किस तरह की हिस्सेदारी दी जाएगी, इस पर चर्चा की गई।


लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी-जेडीयू का मिलाप इंडिया गठबंधन दलों को बड़ा झटका--


एनडीए ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब इसमें बीजेपी, जदयू और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) शामिल थीं। अगर नीतीश कुमार वापस एनडीए में आते हैं तो बीजेपी की बिहार में वही प्रदर्शन दोहराने की उम्‍मीद बढ़ जाएगी। बीजेपी के लिहाज से यह एक और कारण से अहम है। भगवा पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 400 का आंकड़ा पार करने का टारगेट सेट किया है। बिहार में पिछला प्रदर्शन दोहराए बगैर यह लक्ष्‍य हासिल कर पाना मुश्किल होगा। जदयू ने 2019 में 16 लोकसभा सीटें जीती थीं। वह इस साल अपनी सीटों में सुधार करना चाहेगी। जाति सर्वेक्षण के हथियार से लैस नीतीश राज्य में अपनी पहुंच का विस्तार करने के लिए भव्य राम मंदिर उद्घाटन के बाद बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे का फायदा जोड़ना चाहेंगे। बिहार के सीएम का विपक्षी गठबंधन में खट्टा अनुभव रहा है। 

बीजेपी के खिलाफ पार्टियों को एकजुट करने में उनकी भूमिका को कांग्रेस और कुछ अन्य सहयोगियों ने ज्‍यादा तवज्‍जो नहीं दी। नीतीश को उम्मीद थी कि उन्हें विपक्षी गठबंधन के नेता के रूप में पेश किया जाएगा। हालांकि, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल उनकी राह का रोड़ा बने। उन्‍होंने इस भूमिका के लिए कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे को चुना। जदयू प्रमुख गठबंधन में कांग्रेस की 'बड़े भाई' वाली भूमिका और सीट-बंटवारे की बातचीत में देरी से भी नाराज थे।नीतीश कुमार राज्‍य में बीजेपी और राजद दोनों के जूनियर पार्टनर बनकर रह गए हैं। उन्‍हें तेजस्वी यादव को मौका देने के लिए लालू प्रसाद की पार्टी के भारी दबाव का सामना भी करना पड़ रहा है। तेजस्‍वी ने दो बार डेप्‍युटी सीएम के तौर पर राज्‍य की कमान संभाली है।लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी बिहार में काफी जनाधार वाले नेता हैं। जबकि बीजेपी के पास अभी भी राज्य में व्यापक अपील वाला कोई नेता नहीं है। भगवा पार्टी कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और लोकप्रियता पर निर्भर है। इसके अलावा अगर नीतीश कुमार फिर से एनडीए गठबंधन में वापस आते हैं तो बीजेपी को यह भी देखना होगा कि उनकी पूरी पार्टी, खासतौर से उनके पूरे विधायक जेडीयू के साथ बने रहते हैं या नहीं। कारण है कि सरकार बनाने के लिए जेडीयू का एकजुट रहना जरूरी है। बता दें कि 2013 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया तो नीतीश ने बीजेपी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। वे अपने पुराने सहयोगी लालू यादव के पास लौट आए। ये वक्त था साल 2015 । हालांकि ये सियासी दोस्ती भी महज 20 महीने तक चली और साल 2017 में नीतीश कुमार ने फिर से पलटी मारी और बीजेपी के खेमे में चले गए। लेकिन ये गलबहियां भी ज्यादा वक्त नहीं चली। साल 2022 में नीतीश ने फिर पलटी मारी और आरजेडी के साथ मिलकर महागठबंधन बना लिया। अब एक बार फिर माहौल ऐसा बन रहा है कि इंजीनियरिंग के स्टूडेंट रहे नीतीश कुमार बीजेपी के साथ आने के लिए पलटी मारने वाले हैं।

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