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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : स्मार्टफोन यूजर्स की प्राइवेसी और डेटा सिक्योरिटी को लेकर चल रहे विवाद के बीच केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने साइबर सुरक्षा के मकसद से सभी नए मोबाइल फोन में 'संचार साथी' ऐप पहले से इंस्टॉल करने के आदेश को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया है। इससे पहले सरकार ने 28 नवंबर को आदेश जारी किया था कि हर नए हैंडसेट में यह ऐप होना अनिवार्य है, लेकिन विपक्ष के विरोध और जासूसी की चिंताओं के बाद आखिरकार सरकार झुक गई है।

यह अनिवार्य निर्णय क्यों लिया गया?

देश में साइबर धोखाधड़ी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हर दिन औसतन 2,000 धोखाधड़ी की घटनाएँ सामने आ रही हैं। सरकार ने इस ऐप को मोबाइल पर अनिवार्य करने का विचार इसलिए किया था ताकि कम जागरूक नागरिक भी सुरक्षित रह सकें। ऐप की लोकप्रियता भी बढ़ रही है, क्योंकि पिछले एक दिन में ही 6,00,000 लोगों ने इसे डाउनलोड करने के लिए पंजीकरण कराया, जो पिछले दिनों की तुलना में 10 गुना ज़्यादा है। अब तक कुल 14 मिलियन (1.4 करोड़) उपयोगकर्ता इस ऐप को डाउनलोड कर चुके हैं।

कांग्रेस का विरोध और जासूसी का डर

सरकार के इस आदेश के खिलाफ संसद में जमकर हंगामा हुआ। राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने इस ऐप पर गंभीर सवाल उठाए। विपक्ष ने आरोप लगाया कि इस ऐप के कुछ फीचर्स यूजर्स की निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने चिंता जताई कि इस ऐप के जरिए सरकार नागरिकों की रियल-टाइम लोकेशन, सर्च हिस्ट्री, वित्तीय लेनदेन और एसएमएस व व्हाट्सएप जैसी निजी बातचीत पर नजर रख सकती है।

सरकार का स्पष्टीकरण: "जासूसी संभव नहीं है"

इन विवादों के बीच, केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार (3 दिसंबर) को लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने साफ़ तौर पर कहा, "संचार साथी ऐप के ज़रिए जासूसी संभव नहीं है और सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है।" उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का उद्देश्य नागरिकों को साइबर अपराध से लड़ने के लिए सशक्त बनाना है। हालाँकि, जनता की राय और सुझावों का सम्मान करते हुए, सरकार ने अनिवार्य आदेश को फिलहाल वापस ले लिया है।

पहला आदेश क्या था?

गौरतलब है कि 28 नवंबर को जारी मूल आदेश में मोबाइल निर्माताओं को निर्देश दिया गया था कि भारत में बिकने वाले सभी नए हैंडसेट में यह ऐप पहले से इंस्टॉल होना चाहिए। साथ ही, पुराने फोन में भी इसे सॉफ्टवेयर अपडेट के ज़रिए इंस्टॉल करने की बात कही गई थी। आदेश में यह भी कहा गया था कि फोन सेटअप करते समय यह ऐप यूजर को साफ़ दिखाई देना चाहिए। लेकिन अब जब यह नियम निरस्त कर दिया गया है, तो मोबाइल कंपनियों और यूजर्स, दोनों को राहत मिली है।