img

Prabhat Vaibhav,Digital Desk : दिल्ली सिर्फ राजधानी ही नहीं, बल्कि दिलों का शहर भी है। यहां हर गली-मोहल्ले में कोई न कोई कहानी छिपी होती है। दिल्ली घूमने की बात हो और बाजारों की चर्चा न हो, तो बात अधूरी रह जाती है। इन्हीं मशहूर बाजारों में से एक है – चांदनी चौक।

यह बाजार आज भी शादी-ब्याह से लेकर पारंपरिक खरीदारी के लिए सबसे पसंदीदा जगह मानी जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस ऐतिहासिक बाजार का नाम चांदनी चौक कैसे पड़ा? और इसकी शुरुआत कब हुई?

चलिए जानते हैं इस बाजार की दिलचस्प कहानी...

चांदनी चौक की शुरुआत कैसे हुई?

चांदनी चौक का इतिहास मुगल सम्राट शाहजहां के जमाने से जुड़ा है। जब शाहजहां ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित किया और शाहजहानाबाद नामक शहर बसाया, तब उन्होंने लाल किले का निर्माण भी करवाया। इस किले के सामने ही एक खास बाजार बनवाया गया, जो बाद में चांदनी चौक कहलाया।

बाजार की कल्पना किसकी थी?

शाहजहां की बेटी जहांआरा बेगम को खरीदारी का बहुत शौक था। जब सम्राट को यह बात पता चली, तो उन्होंने अपनी बेटी के लिए एक खास बाजार बनवाने का निर्णय लिया। जहांआरा ने खुद इस बाजार का नक्शा तैयार किया। यह सिर्फ एक बाजार नहीं था, बल्कि एक सुंदर और सुनियोजित शॉपिंग डेस्टिनेशन था – महिलाओं के लिए, लोगों के लिए और शहर के लिए।

नाम पड़ा चांदनी चौक कैसे?

बाजार का नाम उसके आकार और खूबसूरती के कारण पड़ा। जब इसे बनाया गया था, तब इसका डिज़ाइन अर्धचंद्राकार था – यानी आधे चांद की तरह। बाजार के बीच से एक नहर बहती थी और आसपास तालाब भी बने थे। जब रात को चांद की रोशनी इन तालाबों पर पड़ती, तो पूरा इलाका चांदनी से चमक उठता। इसी वजह से इस बाजार का नाम पड़ा – चांदनी चौक।

आज का चांदनी चौक

वक्त भले ही बदल गया हो, लेकिन चांदनी चौक का आकर्षण आज भी वैसा ही है। आज भी लोग यहां दूर-दूर से आते हैं – पारंपरिक कपड़ों, ज्वेलरी, स्ट्रीट फूड और ऐतिहासिक अनुभवों के लिए। ये सिर्फ एक बाजार नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और दिलों से जुड़ी एक याद है।