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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : चीन ने अपने करीबी दोस्त पाकिस्तान को बड़ा झटका देते हुए हाइपरसोनिक मिसाइल और उनकी उत्पादन तकनीक (टीओटी) मुहैया कराने की पाकिस्तान की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। इस फैसले से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और उनके रक्षा प्रतिष्ठान पर दबाव बढ़ गया है क्योंकि वे भारत की तेजी से विकसित हो रही मिसाइल तकनीक और हाइपरसोनिक सिस्टम से मुकाबला करने के लिए ये मिसाइलें हासिल करना चाहते थे।

चीन के इनकार के पीछे कारण

रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने पाकिस्तान से कहा है कि ये हाइपरसोनिक मिसाइलें अभी निर्यात के लिए उपलब्ध नहीं हैं और अभी तक ऐसा कोई वर्जन विकसित नहीं हुआ है जिसे दूसरे देशों को दिया जा सके। चीन के इनकार के पीछे दो मुख्य कारण बताए जा रहे हैं:

  1. खराब प्रदर्शन : पाकिस्तान में पहले से मौजूद चीनी हथियारों का प्रदर्शन उम्मीद से कमजोर रहा है, जिसके कारण चीन को पाकिस्तान की क्षमताओं पर पूरा भरोसा नहीं है।
  2. तकनीक लीक होने का डर : चीन को डर है कि पाकिस्तान इस संवेदनशील तकनीक को पश्चिमी देशों के साथ साझा कर सकता है। चीन हाइपरसोनिक तकनीक को अपनी रणनीतिक सुरक्षा का अहम हिस्सा मानता है, खास तौर पर अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ, और इसलिए वह अंतरराष्ट्रीय दबाव और राजनीतिक तनाव नहीं बढ़ाना चाहता।

चीन की निर्यात नीति और पाकिस्तान पर इसका प्रभाव

रक्षा वेबसाइट के अनुसार चीन अपने अन्य हथियारों, जैसे जे-10सीई लड़ाकू विमान या एचक्यू-9 वायु रक्षा प्रणाली के विशेष निर्यात संस्करण बनाता है, लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइलें इतनी उन्नत और संवेदनशील हैं कि वह उन्हें विदेश नहीं भेजना चाहता। चीन की नीति है कि बहुत आधुनिक और शक्तिशाली हथियार, जो दुनिया में संतुलन बिगाड़ सकते हैं, दूसरे देशों को नहीं दिए जाने चाहिए।

पाकिस्तान चीन की मदद से ये मिसाइलें खरीदना चाहता था और खुद इनका निर्माण भी सीखना चाहता था, लेकिन चीन के इनकार से उसे बड़ा झटका लगा है। इससे भारत (जो पहले से ही HSTDV जैसी मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है) के साथ प्रतिस्पर्धा करने के पाकिस्तान के प्रयासों में बाधा आ सकती है।

इसके अलावा, चीन वर्तमान में इन हाइपरसोनिक मिसाइलों को बेहतर बनाने और बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए काम कर रहा है। यह प्रक्रिया पूरी होने तक वह इन्हें किसी अन्य देश को हस्तांतरित करने के लिए तैयार नहीं है। यह घटना संवेदनशील तकनीक के हस्तांतरण को लेकर चीन-पाकिस्तान संबंधों में छिपे तनाव को भी उजागर करती है।