
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : जगदीप धनखड़ के अप्रत्याशित इस्तीफे से विपक्ष जितना हैरान है, भाजपा उससे कहीं ज़्यादा असमंजस में है। राज्यसभा के सभापति की तबीयत इतनी खराब है कि उन्होंने अपने कार्यकाल से दो साल पहले ही अचानक पद छोड़ने का फैसला कर लिया, वो भी तब जब भारत के संवैधानिक इतिहास में किसी उपराष्ट्रपति ने इतनी जल्दी इस्तीफा नहीं दिया। हालाँकि, उपराष्ट्रपति का पद छोड़कर राष्ट्रपति बनने या उनका चुनाव लड़ने की बात अलग है। इसी वजह से सरकार के अंदर और बाहर भी उतनी ही अटकलें लगाई जा रही हैं जितनी भाजपा में कि जगदीप धनखड़ ने इतना बड़ा फैसला क्यों लिया?
धनखड़े ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया?
भारत जैसे देश में जहाँ नेता पद पाने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं, वहाँ उपराष्ट्रपति जैसे पद को ठुकराना आम बात नहीं है। इस तरह जगदीप धनखड़ ने साबित कर दिया है कि वे खुद को एक साधारण राजनेता के रूप में ढाल नहीं पाए हैं। लेकिन, उन्होंने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया, इस मुद्दे पर भाजपा के दिग्गज नेता भी चुप्पी साधे हुए हैं।
'न्यायपालिका इसका कारण हो सकती है'
जब हमने ज़ोर देकर पूछा, तो नाम न छापने की शर्त पर एक भाजपा नेता ने कहा, "न्यायपालिका इसकी वजह हो सकती है... किरण रिजिजू को भी क़ानून मंत्रालय छोड़ना पड़ा... धनखड़ के साथ भी यही हो सकता है। कुछ भी कहना बहुत मुश्किल है... उनसे बेहतर कोई नहीं जानता... उन्होंने इस समय ऐसा फ़ैसला क्यों लिया?"
कॉलेजियम प्रणाली पर उठे सवाल
दरअसल, जगदीप धनखड़ ने हाल के दिनों में भारतीय न्यायपालिका को लेकर जिस तरह की टिप्पणियाँ की हैं; और उसके रुख पर जिस तरह के सवाल उठाए हैं, वैसा आज तक इतने ऊँचे संवैधानिक पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति ने नहीं उठाया। चाहे कॉलेजियम व्यवस्था का सवाल हो या लोकतंत्र में संसद की 'सर्वोच्चता' का, उन्होंने खुलकर अपने विचार रखे हैं। इससे देश में एक नई बहस भी शुरू हो गई है।
वे राष्ट्रपति द्वारा उन्हें समय सीमा दिये जाने पर भी नाराज थे।
न्यायपालिका पर उन्होंने सबसे बड़ा सवाल धारा 142 के इस्तेमाल को लेकर उठाया है, जिसे उन्होंने लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 'परमाणु मिसाइल' भी कहा था। क्योंकि, राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए फैसले लेने की समयसीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वे बेहद नाराज थे। इसी तरह, जब दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से नकदी से भरे बैग मिले और कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने कॉलेजियम व्यवस्था पर निशाना साधा था। सोमवार को जब विपक्ष ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया, तो धनखड़ ने उसे मंजूरी देने में देर नहीं की। जबकि, लोकसभा में भी सरकारी सदस्यों द्वारा इसी तरह की कार्रवाई शुरू की जा चुकी है।