
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : वाराणसी के चर्चित ज्ञानवापी मामले में शुक्रवार को एक नई कड़ी जुड़ गई, जब लोहता निवासी मुख्तार अहमद अंसारी द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई हुई। मामला 1991 में दाखिल उस वाद से जुड़ा है, जिसमें विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रतिनिधियों ने ज्ञानवापी में नए मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ की अनुमति देने की मांग की थी।
मुख्तार अहमद अंसारी ने इस पुराने मुकदमे में खुद को पक्षकार बनाने की मांग की, लेकिन इसके खिलाफ वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने अदालत में तर्क रखते हुए कहा कि अब इस वाद में नए पक्षकार को जोड़ना न्यायिक प्रक्रिया में बाधा बन सकता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1992 में इस वाद को लेकर सार्वजनिक सूचना दी गई थी, जिसमें निर्धारित समयसीमा के भीतर कोई भी इच्छुक व्यक्ति आवेदन कर सकता था।
"32 साल बाद दायर किया गया पक्षकार बनने का यह आवेदन अब देरी से किया गया कदम है और इसका कोई ठोस कारण भी प्रार्थना पत्र में नहीं बताया गया है," रस्तोगी ने अदालत को बताया।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि इस आवेदन को स्वीकार कर लिया जाता है, तो कई और लोग भी इसी तरह प्रार्थना पत्र दाखिल कर सकते हैं, जिससे मुकदमे की सुनवाई लगातार टलती रहेगी।
वादमित्र ने यह भी तर्क दिया कि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड पहले से ही प्रतिवादी पक्ष में है और आम मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा कर रहा है। ऐसे में अंसारी को पक्षकार बनाने की आवश्यकता नहीं है।
हालांकि, मुख्तार अहमद अंसारी ने अपने प्रार्थना पत्र में आरोप लगाया है कि वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद अब वादी पक्ष के साथ मिल गए हैं, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि इन दोनों ने मुकदमे में प्रतिरोध करना क्यों छोड़ा।
इस बहस के बाद अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 14 जुलाई तय की है, ताकि अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद भी अपना पक्ष रख सके।
गौरतलब है कि अंसारी का प्रार्थना पत्र पहले 2 मई 2022 को सिविल जज (सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक) की अदालत में खारिज हो चुका है, जिसके खिलाफ अब उन्होंने पुनरीक्षण याचिका दाखिल की है।