यूपी के सभी मंदिरों में 22 जनवरी को धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन वाले शासनादेश को चुनौती, हाईकोर्ट ने तुरंत सुनवाई से किया इंकार

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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव की ओर से जारी उस शासनादेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया है, जिसमें मुख्य सचिव ने 22 जनवरी को प्रदेश के सभी मंदिरों में भजन-कीर्तन करने, रामायण, रामचरित मानस का पाठ करने, सभी शहरों में रथ-कलश यात्रा निकालने का शासनादेश जारी किया गया है। हाईकोर्ट अब इस मामले में आउट आफ टर्न सुनवाई करने से इंकार कर दिया। कोर्ट नियमानुसार सुनवाई करेगी।

यह जनहित याचिका आल इंडिया लायर्स यूनियन (एआईएलयू), उत्तर प्रदेश के राज्य अध्यक्ष अधिवक्ता नरोत्तम शुक्ल की ओर से दाखिल की गई है। याचिका में कुल चार लोगों को पक्षकार बनाया गया है। याचिका पर सुनवाई के लिए कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता के समक्ष अविलम्ब सुनवाई हेतु निवेदन किया गया। लेकिन कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति की कोर्ट ने इसे अर्जेंट (अति आवश्यक) नहीं मानते हुए अविलम्ब सुनवाई से इंकार कर दिया।

याचिका में मुख्य सचिव के शासनादेश को भारतीय संविधान के धर्म निरपेक्ष चरित्र व अनुच्छेद 25, 26 और 27 के खिलाफ माना गया है। कहा है कि इसके अनुसार राज्य को किसी भी धार्मिक गतिविधि, आयोजन से निरपेक्ष रहने की अपेक्षा संविधान में की गयी है। साथ ही संविधान धर्म अंतःकरण की आजादी सभी व्यक्तियों और धार्मिक संप्रदायों को देता है किन्तु राज्य का स्वंय अपना कोई धार्मिक चरित्र नहीं होगा।

उत्तर प्रदेश मुख्य सचिव ने इस सम्बंध में 21 दिसम्बर 2023 को शासनादेश जारी किया है। जारी शासनादेश में यूपी के सभी जिलाधिकारियों को 22 जनवरी को भजन-कीर्तन, रामायाण, रामचरित मानस पाठ, रथ और कलश यात्रा निकालने को कहा गया है। इसके लिए गांव, ब्लाक, जिला और शहरों में आंगनबाड़ी, आशा बहुओं, एएनएम आदि कर्मचारियों का सहयोग लेने, कथा वाचको, कीर्तन मंडलियों को जिला सांस्कृतिक कौंसिल द्वारा भुगतान करने (इस हेतु राजकोष से अलग से 590 लाख रूपये जारी किए गए) को कहा गया है। शासनादेश में यह सब अयोध्या में भगवान रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में ऐसा करने को कहा गया है।

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