
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : मुंबई में साल 2006 में हुए लोकल ट्रेन सीरियल बम धमाकों को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने 19 साल पुराने इस मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए 12 में से 11 आरोपियों को बरी कर दिया। एक आरोपी की अपील प्रक्रिया के दौरान मृत्यु हो चुकी थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट की दो जजों की विशेष पीठ — न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति एस. जी. चांडक — ने कहा कि अभियोजन पक्ष ठोस और विश्वसनीय सबूतों के जरिए आरोप साबित करने में असफल रहा। अदालत ने यह भी माना कि आरोपियों से जबरदस्ती बयान लिए गए और कई गवाहों की गवाही संदेहास्पद पाई गई। कोर्ट ने कहा कि इन बयानों को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जा सकती।
यह फैसला उस निचली अदालत के निर्णय को पलटता है, जिसने 2015 में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था। इनमें से 5 को मौत की सजा और 7 को उम्रकैद दी गई थी। जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी, उनमें मोहम्मद फैसल शेख, एहतिशाम सिद्दीकी, नावेद हुसैन खान, आसिफ खान और कमाल अंसारी शामिल थे। कमाल अंसारी की 2022 में जेल में कोविड-19 से मौत हो गई थी।
इस केस में अंतिम सुनवाई जनवरी 2025 में हुई थी और तभी से फैसला सुरक्षित रखा गया था। दोषियों को येरवडा, नासिक, अमरावती और नागपुर जेलों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए कोर्ट में पेश किया गया।
गौरतलब है कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सात अलग-अलग जगहों पर बम धमाके हुए थे, जिसमें 189 लोगों की जान चली गई थी और करीब 824 लोग घायल हुए थे। यह घटना पूरे देश को हिला देने वाली थी।
अब जब हाईकोर्ट ने सबूतों की कमी और जांच की खामियों को आधार बनाकर सभी जीवित 11 दोषियों को बरी कर दिया है, तो यह मामला एक बार फिर देश की न्याय व्यवस्था, जांच प्रणाली और आतंकवाद से जुड़े मामलों की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।