
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : उत्तराखंड के हरिद्वार, जिसे आस्था और आध्यात्म का केंद्र माना जाता है, वहां की तस्वीरें देखकर दुख होता है। कांवड़ यात्रा भले ही संपन्न हो गई हो और लाखों शिव भक्त 'हर-हर महादेव' का जयघोष करते हुए अपने घरों को लौट गए हों, लेकिन पीछे छूट गया है गंगा घाटों और आसपास के इलाकों में गंदगी का एक विशाल अंबार। जगह-जगह प्लास्टिक की बोतलें, कपड़ों के ढेर, प्रसाद के बचे हुए टुकड़े और खाने का सामान पड़ा हुआ है, जिसने घाटों की पवित्रता पर ही सवाल उठा दिया है।
यह मंज़र बेहद निराशाजनक है। गंगा मैया, जिसकी पवित्र जल को लेकर शिवभक्त कांवड़ यात्रा करते हैं, उसी के घाटों पर इतनी गंदगी फैलाना, यह आस्था के प्रति एक गंभीर उदासीनता को दर्शाता है। धर्म और आध्यात्म का संदेश यह भी होता है कि हम प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान करें। ऐसे में कांवड़ यात्रा के दौरान हुई गंदगी, जहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं, चिंता का विषय बन जाती है।
स्थानीय प्रशासन और नगर निगम पर भी सवाल उठते हैं। इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने का पता होते हुए भी, क्या उचित सफाई और कचरा प्रबंधन की योजना नहीं बनाई गई थी? यह साफ दिखाता है कि तैयारियों में कहीं न कहीं कमी रह गई। एक तरफ तो 'स्वच्छ भारत अभियान' की बात होती है, वहीं दूसरी तरफ पवित्र धार्मिक स्थलों पर गंदगी का ये आलम, एक विरोधाभास पैदा करता है।
गंगा के किनारे जहां कुछ दिन पहले भक्ति और उत्साह का सैलाब था, वहीं अब बदबू और गंदगी का साम्राज्य है। स्थानीय लोग भी इससे परेशान हैं। यह केवल स्वच्छता का मुद्दा नहीं, बल्कि गंगा नदी और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी एक गंभीर खतरा है। प्लास्टिक और अन्य कचरा नदी में बहकर प्रदूषण बढ़ाएगा, जिसका असर जलीय जीवन और डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता पर पड़ेगा।
यह घटना हम सभी के लिए एक सीख है। आस्था तभी सच्ची है, जब उसके साथ जिम्मेदारी भी हो। उम्मीद है कि भविष्य की कांवड़ यात्राओं या ऐसे किसी भी बड़े आयोजन के लिए, सरकार, प्रशासन और श्रद्धालु मिलकर ठोस कचरा प्रबंधन की योजना बनाएंगे, ताकि धर्म और पर्यावरण दोनों की पवित्रता बनी रहे।