
Prabhat Vaibhav,Digital Desk : खीरगंगा में आए भीषण सैलाब ने धराली में कई जिंदगियों को निगल लिया है। मलबे में दबे लोगों के जिंदा मिलने की उम्मीद अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है। हालात की गंभीरता को देखते हुए सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान लगातार चौतरफा प्रयास कर रहे हैं।
राहत कार्य में न सिर्फ मानव संसाधन बल्कि आधुनिक तकनीक का भी पूरा इस्तेमाल हो रहा है। मलबे के नीचे जिंदगी के किसी भी निशान को खोजने के लिए आधा दर्जन से ज्यादा अत्याधुनिक उपकरण लगाए गए हैं, जो जमीन की सतह से कई मीटर नीचे तक की गतिविधियों को पहचान सकते हैं। हालांकि, धराली में मलबे की भारी मात्रा इन उपकरणों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है।
मुख्य तकनीक और उपकरण:
विक्टिम लोकेटिंग कैमरा: थर्मल इमेजिंग और ध्वनि के जरिए मलबे में दबे लोगों का पता लगाता है। इस साल फरवरी में चमोली के माणा हादसे में भी इसका इस्तेमाल किया गया था।
थर्मल इमेजिंग कैमरा: वस्तुओं से निकलने वाली गर्मी को रंग-कोडित तस्वीर में बदलकर अंधेरे में भी जीवन के संकेत ढूंढने में सक्षम।
रेस्क्यू राडार: 10 मीटर गहराई तक जीवित व्यक्ति की धड़कन या हलचल को पकड़ सकता है।
ग्राउंड पेनेट्रेटिंग राडार: जमीन के नीचे 50 मीटर तक की संरचनाओं का पता लगाने में सक्षम शक्तिशाली तकनीक।
लाइव डिटेक्टर: 20 फीट तक गहराई में दबे लोगों की पहचान कर सकता है।
एक्सो थर्मल कटिंग: मलबे में फंसे भवनों तक पहुंचने के लिए धातु या अन्य कठोर संरचनाओं को पिघलाकर काटने की विशेष विधि।
इन सभी प्रयासों के बावजूद मलबे की भारी परत राहत कार्य में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। फिर भी बचाव टीमें बिना थके हर संभव कोशिश में जुटी हैं, ताकि किसी भी जिंदगी को बचाने का मौका हाथ से न जाए।