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Prabhat Vaibhav,Digital Desk : पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने हाल ही में स्पीकर कुलतार सिंह संधवां को एक पत्र लिखकर मौजूदा कार्यप्रणाली पर गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि नियमित विधान सत्रों की जगह चुनिंदा विशेष सत्रों को तरजीह देकर विधानसभा की भूमिका को धीरे-धीरे कमजोर किया जा रहा है।

बाजवा ने पत्र में साफ शब्दों में लिखा कि वह पहले भी कई बार सदन की बैठकों की घटती संख्या की ओर ध्यान दिला चुके हैं, लेकिन इन बातों को लगातार नजरअंदाज किया गया। उनके मुताबिक यह केवल प्रक्रिया से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि इससे संवैधानिक संतुलन और विधायी लोकतंत्र पर असर पड़ रहा है।

उनका कहना है कि विधानसभा का असली काम सरकार से सवाल पूछना, मुद्दों पर खुली चर्चा करना और कार्यपालिका को जवाबदेह बनाना है। लेकिन जब नियमित शरद और शीतकालीन सत्रों की जगह सीमित एजेंडे वाले विशेष सत्र बुलाए जाते हैं, तो यह उद्देश्य ही कमजोर पड़ जाता है।

बाजवा ने यह भी कहा कि विधानसभा का समय लगातार कम किया जा रहा है, जिससे निगरानी की भूमिका प्रभावित हो रही है। नतीजा यह है कि सदन धीरे-धीरे गंभीर बहस के मंच से हटकर औपचारिक कार्यक्रमों तक सीमित होता जा रहा है।

उन्होंने इसे और भी चिंताजनक बताया कि यह सब उस सरकार के कार्यकाल में हो रहा है, जो पहले संवैधानिक मूल्यों, शक्तियों के संतुलन और संस्थागत नैतिकता की बातें करती रही है। बाजवा के शब्दों में, जो लोग कभी संवैधानिक नैतिकता की मिसाल देते थे, वही आज सत्ता को कार्यपालिका में केंद्रित करने की दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं।

बाजवा ने याद दिलाया कि नियमों के अनुसार साल में कम से कम 40 बैठकें होनी चाहिए, एक मांग जिसे मौजूदा सत्ता पक्ष ने भी पहले मजबूती से उठाया था। लेकिन अब उसी सिद्धांत को quietly पीछे छोड़ दिया गया है।

उनका कहना है कि प्रश्नकाल और शून्यकाल के बिना होने वाले विशेष सत्रों से विधानसभा की जवाबदेही कमजोर होती है और सदन सिर्फ दिखावे का माध्यम बनकर रह जाता है।

बाजवा ने यह भी जोड़ा कि ऐसे समय में जब पंजाब कानून-व्यवस्था, नशे की समस्या, स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव, भूजल प्रदूषण और बढ़ते कर्ज जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, तब विधानसभा को नियमित और गंभीर सत्रों के जरिए इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए।

अंत में उन्होंने स्पीकर से आग्रह किया कि वे संवैधानिक जिम्मेदारी निभाते हुए पूरे शरद और शीतकालीन सत्र बुलाएं, साल में कम से कम 40 बैठकें सुनिश्चित करें और प्रश्नकाल व शून्यकाल की गरिमा बनाए रखें। उनका मानना है कि तभी विधानसभा जनता की आवाज का सच्चा मंच बन पाएगी।