Prabhat Vaibhav,Digital Desk : अरावली पर्वतमाला का मामला लंबे समय से चल रहा है। इस पर्वतमाला के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में खनन को लेकर अदालती फैसले भी आ चुके हैं । अब अरावली पर्वतमाला की परिभाषा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है । सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए सुनवाई की और 20 नवंबर के अपने फैसले पर रोक लगा दी है। अब सर्वोच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई 21 जनवरी 2026 को करेगा।
अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखला की परिभाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच , सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया है । मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत के साथ न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी पीठ में मौजूद हैं । न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय पर अस्थायी रोक लगा दी है ।
20 दिसंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखला की एक समान और वैज्ञानिक परिभाषा को मंजूरी दी । साथ ही, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले अरावली क्षेत्र में विशेषज्ञ रिपोर्ट प्राप्त होने तक नए खनन पट्टे देने पर रोक लगा दी गई ।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह भी निर्धारित किया जाना चाहिए कि 12,081 पहाड़ियों में से 1,048 पहाड़ियाँ 100 मीटर ऊँचाई के मानदंड को पूरा करती हैं या नहीं, यह निष्कर्ष तथ्यात्मक और वैज्ञानिक रूप से सही है या नहीं। साथ ही यह भी निर्धारित किया जाना चाहिए कि भूवैज्ञानिक जाँच आवश्यक है या नहीं।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि इसके बाद, सर्वोच्च न्यायालय उपरोक्त मुद्दों की जांच के लिए रिपोर्ट का व्यापक मूल्यांकन करने हेतु एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने का प्रस्ताव करता है । उन्होंने आगे कहा कि अरावली क्षेत्र से बाहर रखे जाने वाले क्षेत्रों की विस्तृत पहचान की जानी चाहिए और यह भी जांच की जानी चाहिए कि क्या इस प्रकार के बहिष्करण से कटाव का खतरा बढ़ता है, जिससे अरावली पर्वतमाला की पारिस्थितिक अखंडता खतरे में पड़ जाती है ।
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समिति के गठन से पहले माननीय न्यायालयों को जांच के क्षेत्रों का निर्धारण करना चाहिए । मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा, "हम समिति की सिफारिशों और इस न्यायालय के निर्देशों को फिलहाल स्थगित रखना आवश्यक समझते हैं । यह स्थगन समिति के गठन तक लागू रहेगा।" नोटिस 21 जनवरी के लिए जारी किया गया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यों को आगे खनन गतिविधियां न करने के लिए नोटिस जारी किए गए हैं ।
पूर्व वन संरक्षण अधिकारी आर.पी. बलवान ने भी इस संबंध में एक याचिका दायर की है। आर.पी. बलवान का तर्क है कि अरावली पर्वतमाला के लिए 100 मीटर की ऊंचाई सीमा निर्धारित करने से इस विशाल पर्वत श्रृंखला में संरक्षण प्रयासों को नुकसान पहुंचेगा। अरावली पर्वतमाला गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है और थार रेगिस्तान तथा उत्तरी मैदानों के बीच एक अवरोधक का काम करती है। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि अरावली में सतत खनन के लिए प्रबंधन योजना विकसित होने तक कोई भी नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जाएगा।
पूर्व वन संरक्षण अधिकारी आरपी बलवान ने भी इस संबंध में एक याचिका दायर की है। आरपी बलवान का तर्क है कि अरावली पर्वतमाला के लिए 100 मीटर की ऊंचाई सीमा निर्धारित करने से इस विशाल पर्वत श्रृंखला में संरक्षण प्रयासों को नुकसान पहुंचेगा । अरावली पर्वतमाला गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है और थार रेगिस्तान तथा उत्तरी मैदानों के बीच एक अवरोधक का काम करती है । पर्यावरण मंत्री ने कहा है कि अरावली पर्वतमाला में सतत खनन के लिए प्रबंधन योजना विकसित होने तक कोई भी नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जाएगा ।




